द्वारा
सुधीर बंसल
जो भी तुझ पर बीत रही, अब उससे मुक्ति चाहता है|
घुस कर खेल जो खेला था, अब उसकी बात सुनाता है|
अपनी तृप्ति पूरी कर, अब संतों की भीड़ में आता है|
भ्रष्ट बना रहा जीवन भर, अब हटने की राह दिखाता है|
ऐसे सारे लोग आ गए, अब हर आन्दोलन में|
धरने पर भीड़ लगाता है, जब पिकनिक पर जाने की मन में|
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