द्वारा
सुधीर बंसल
दर्द जो दिल के अन्दर है, उसको बाहर लाना चाहता हूँ।
छिपे हुए अरमान जो दिल में, उन पर छाना चाहता हूँ।
गाना जो गाना भूल गया हूँ, उस गाने को गाना चाहता हूँ।
सारे दुःख दर्दों के संग्रह की, चिता जलाना चाहता हूँ।
आँसू जो सूख गए आँखों में, उसकी अविरल धारा चाहता हूँ।
दूर जो मुझसे छिटक गए हैं, उनको वापस लाना चाहता हूँ।
जो कुछ भी पाया है अब तक, उसको भी खोना चाहता हूँ।
पर हँसना जो भूल गया हूँ, अब वापस वह हँसना चाहता हूँ।
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