प्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
मनुष्य के लिये रोटी-रोजी की केवल शारीरिक आवश्यकताएँ अथवा समस्याएँ ही तो नहीं है। उसकी कुछ मानसिक, आत्मिक अथवा आध्यात्मिक आवश्यकताएँ एवं समस्याएँ भी है, जिन्हें हल करना न केवल उतना ही जरूरी है जितना कि शारीरिक आवश्यकताओं को बल्कि उनसे कहीं अधिक अनिवार्य है और यदि सच पूछा जाए तो मनुष्य की वास्तविक आवश्यकताएँ एवं समस्याएँ आत्मिक अथवा आध्यात्मिक ही हैं।
शारीरिक समस्याएँ तो उनकी अनुपूरिका मात्र ही हैं। यदि मनुष्य एक बार अपनी आध्यात्मिक समस्याएँ हल करले, तो शारीरिक समस्याएँ रह ही न जाए। शारीरिक समस्याएँ शरीर रक्षा के लिए ही तो हल करनी पड़ती है और शरीर रक्षा का अर्थ है उसमें ओतप्रोत चेतना को सुरक्षित रखना। चेतना रहित मृत शरीर से न तो किसी को कोई सम्बन्ध रहता है और न कोई उसकी रक्षा करता है। शरीर से मनुष्य का सम्बन्ध चेतना तक ही होता है।
यही चेतना वह आत्मा है जिसके कारण शरीर की महत्ता है और शरीर रक्षा के मिस (बहाने) से मनुष्य उसकी रक्षा करता है, उसको ही पालता पोषता और सेवा करता है। इस प्रकार की आवश्यकताएँ आत्मा को ही हैं शरीर आदि की नहीं। यदि एक बार आत्मा की आवश्यकताएँ एवं समस्याएँ हल कर ली जाएँ तो शरीर से लेकर संसार की सारी आवश्यकताएँ एवं समस्याएँ स्वयं ही शमन हो जाएँ।
सुरपति दास
इस्कॉन
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