सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
जहाँ मन और आत्मा का एकीकरण होता है, जहाँ जीव का इच्छा रुचि एवं कार्य प्रणाली विश्वात्मा की इच्छा रुचि प्रणाली के अनुसार होती है, वहाँ अपार आनन्द का स्रोत उमड़ता रहता है, पर जहाँ दोनों में विरोध होता है, जहाँ नाना प्रकार के अन्तर्द्वन्द चलते रहते हैं, वहाँ आत्मिक शान्ति के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं।
मन और अन्त:करण के मेल अथवा एकता से ही आनन्द प्राप्त हो सकता है। इस मेल अथवा एकता को एवं उसकी कार्य-पद्धति को योग-साधना प्रत्येक उच्च प्रवृत्तियों वाले साधक के जीवन का नित्य कर्म होना चाहिए। भारतीय संस्कृति के अनुसार सच्ची सुख-शान्ति का आधार योग-साधना ही है। योग द्वारा सांसारिक संघर्षों से व्यथित मनुष्य अन्तर्मुखी होकर आत्मा के निकट बैठता है, तो उसे अमित शान्ति का अनुभव होता है।
मनुष्य के मन का वस्तुत: कोई अस्तित्व नहीं है। वह आत्मा का ही एक उपकरण औजार या यन्त्र है। आत्मा की कार्य-पद्धति को सुसंचालित करके चरितार्थ कर स्थूल रुप देने के लिए मन का अस्तित्व है। इसका वास्तविक कार्य है कि आत्मा की इच्छा एवं रुचि के अनुसार विचारधारा एवं कार्यप्रणाली को अपनावे। इस उचित एवं स्वाभाविक मार्ग पर यदि मन की यात्रा चलती रहे, तो मानव प्राणी जीवन सच्चे सुख का रसास्वादन करता है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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