Sudhir Kumar Jha
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सुप्रभात जी ।
कहानी सुनी सुनाई ।
मनुष्य संसार के विषयों में इतना ज्यादा फंसा हुआ है कि उसे अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक क्षण का भी अवकाश नहीं है कि वह सोच सके कि वह कहां से आया और क्यों आया है और यहां आकर उसका क्या कर्तव्य है इस माया के बाजार में मनुष्य अपने को खो बैठा है और ऐसी भूल भुलैया में जा फंसा है कि उससे बाहर निकलना अब उसके लिए असंभव सा हो रहा है।
रे मन! तू कहां भटक रहा है जरा तुम सोचो तो सही कि तुम कौन हो कहां से आए हो क्या तुम्हारा एक कर्तव्य है क्यों व्यर्थ के प्रपंच का विस्तार कर रहा है, ये पगले तू सोच तो जरा 1 बूंद से यह शरीर बना और फिर इसमें प्रभु ने प्राण डाल दिए और तुमने इस जगत में आकर लोभ मोह की विकट धारा में पड़कर अपने ही सृजनहार को भूला दिया।
अपने प्राणधन से तो परिचय करते नहीं और दुनिया भर का नेम व्रत करते फिरते हो वह तो प्रेम से एकमात्र सिर्फ प्रेम से ही रीझते है और तुम लगे हो व्यर्थ के षट्कर्म में, स्वप्न में भी उनकी उनके प्रेम की सुध नहीं आती सेमल के फूल की तरह सजाते संवारते जीवन बीता जा रहा है, ध्यान रखना मौत किसी से प्यार नही करती तुम धन पुत्र आदि के चक्कर में ही पड़े रहोगे और फिर एक दिन यमदूत तुम्हें लेने के लिए आ जायेंगे ऐसा सुंदर अनमोल जीवन मिला है व्यर्थ में मत बरबाद मत करो भजन करले भाई।
सुरपति दास
इस्कॉन
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