Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अप्रसन्नता से बढ़कर और कोई घातक शत्रु

 

सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
मन का, मस्तिष्क का नाश करने में अप्रसन्नता से बढ़कर और कोई घातक शत्रु नहीं। जिसका चित्त किसी न किसी कारण दुखी बना ही रहता है। जो आशंका, भय, असफलता से चिन्तित रहता है, जिसे द्वेष, कुढ़न, शोक, आवेश, उद्वेग घेरे रहते हैं, जो अहंकार से गर्दन फुलाये रहता है सीधे मुँह किसी से बात करना जिसे सुहाता नहीं ऐसे बद मिज़ाज आदमी अपनी मानसिक शक्तियों का सत्यानाश करते रहते हैं।

जिसे अपनी महानता का, अपने आत्म गौरव का ध्यान है, वह नीच विचारों और पतित कर्मों को नहीं अपना सकता अतएव उसकी उच्च विचारधारा और उत्तम कार्यप्रणाली अपने आप ही स्वचालित डायनेमो की तरह प्राणशक्ति की बिजली उत्पन्न करती है और साधक का प्राणमय कोष सुविकसित होता चलता है।

कठिनाइयों से, प्रतिकूलताओं से घिरे होने पर भी जीवन का वास्तविक प्रयोजन समझने वाले व्यक्ति कभी निराश नहीं होते, वे हर प्रकार की परिस्थितियों में अपने लक्ष्य से ही प्रेरणा प्राप्त करते तथा श्रेष्ठता के पथ पर क्रमशः आगे बढते जाते हैं।

सुरपति दास
इस्कॉन
 

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