सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
जिस प्रकार पतंग उड़ाने वाला डोरी अपने हाथ में रखता है और पतंग उलझने पर तुरंत अपने पास खींच लेता है। उसी प्रकार संसार में रहते हुए भी इंद्रियों की डोर को अपनी मुट्ठी में रखने की कला हमें आनी ही चाहिए।
कर्म करते समय संसार जैसा व्यवहार करो पर चेतना इतनी सम्पन्न हो कि भीतर से संसार की नश्वरता का बोध भी हमें होता रहे। ज्ञान युक्त विचारों से कर्म करोगे तो कहीं उलझोगे ही नहीं। जब-जब मन विकारों से मुक्त होता जायेगा तब-तब बाहरी संसार भी हमें शांति का अनुभव करायेगा।
जब तक तुम केवल बाहरी वस्तुओं को बदलने में लगे रहोगे तब तक जीवन में प्रसन्नतापूर्ण बदलाव नहीं आ पायेंगे। बदलाव केवल विचारों में नहीं अपितु हमारे आचरण में भी होना चाहिए। अपने को कर्ता और कारण मत मानो। प्रभु को कारण स्वरूप जानकर उनकी कृपा का अनुभव करते हुए सदैव ज्ञान युक्त जीवन जीने का प्रयास करो।
सुरपति दास
इस्कॉन
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