Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भगवान केवल क्रिया से भेद करते हैं भाव से नहीं

 
सुप्रभात जी ।
कहानी सुनी सुनाई । 
           प्रभु सर्व विधि अपने जीव का मंगल ही चाहते हैं। जिस प्रकार एक वैद्य के द्वारा दो अलग-अलग रोग के रोगियों को अलग-अलग दवा दी जाती है। किसी को मीठी तो किसी को अति कड़वी दवा दी जाती है।
            दोनों के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार किये जाने के बावजूद भी उसका उद्देश्य एक ही होता है, कि रोगी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान कराना। ठीक इसी प्रकार उस ईश्वर द्वारा जीव के साथ लौकिक व्यवहार की भिन्नता के पीछे भी केवल एक ही उद्देश्य होता है और वो ये कि कैसे भी हो अपने जीव का कल्याण करना।
         प्रभु की व्यवस्था बड़ी विलक्षण है। सुदामा जी को अकिंचन बनाकर तारते हैं तो राजा बलि को सम्राट बनाकर तारते हैं। शुकदेव जी को परम ज्ञानी बनाकर तारते हैं तो विदुर जी को प्रेमी बनाकर तारते हैं। पांडवों को मित्र बनाकर तारते हैं व कौरवों को शत्रु बनाकर तारते हैं। स्मरण रहे, भगवान केवल क्रिया से भेद करते हैं भाव से नहीं।
सुरपति दास
इस्कॉन/भक्तिवेदांत हॉस्पिटल


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