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चाय-चाय, गयम चाय

 
करते हो तुम मईया नाम मेरा हो रहा है। तभी तो कहते हैं यश अपयश विधि हाथ। संसार के सबसे विशाल आभासी परिवार के मिलन समारोह में शामिल होने वाले परिजनों को ढ़ेरों शुभकामनाएं। ♥️
Sanjay Sinha उवाच
चाय-चाय, गयम चाय
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बचपन की मेरी ट्रेन यात्राओं में दो स्टेशनों से बहुत बार गुजरना हुआ। मुगल सराय और इटारसी। जब भोपाल से पटना जाता था तो मुगल सराय आता था और पटना से भोपाल जाते हुए इटारसी। दोनों स्टेशन मेरे लिए बहुत बड़े होते थे। वहां गाड़ी रुकती नहीं थी कि चाय, समोसा, गरम पकौड़े, ठंडा, ठंडा आवाज़ कानों में गूंजने लगती थी। 
मुगल सराय में एक तरफ रेलवे की ओर से माइक पर आवाज़ आती कि 191 अप मगध एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से सात घंटे विलंब से प्लेटफार्म नंबर दो पर आ रही है, बीच में आवाज़ आती, चाय-चाय। गयम चाय।
यही इटारसी में होता था। दोनों शहर छोटे थे, स्टेशन बड़े। 
ट्रेन के आने की सूचना और चाय के गरम होने की सूचना साथ चलती थी। 
अब बहुत दिनों से इस तरह का अनुभव नहीं हुआ है। एक तो वजह है ट्रेन की यात्रा का कम होना। दूसरे एसी प्रथम श्रेणी में चलना। पहले स्लीपर क्लास में जीवन के अनुभवों का अपना उपन्यास था। अब तो मन के भीतर चलने वाली छोटी कहानियां ही हैं। 
बात ये है कि संजय सिन्हा कोई बात सीधी नहीं करते। पहले भूमिका, फिर कहानी। 
आज अचानक मुगल सराय की याद इसलिए आई (स्टेशन का नाम बदल चुका है, संजय सिन्हा को ये बात पता है) क्योंकि उन्हें बीच कहानी में 24 दिसंबर को दिल्ली में होने वाले अपने मिलन समारोह (ssfbFamily) की चर्चा भी करनी है। मतलब ट्रेन आ रही है, जा रही है उसके एनाउंसमेंट के बीच चाय, चाय, गयम चाय की भी आवाज़ आपको आती रहेगी। यही कांबिनेशन है जिंदगी का रस। 
मैं कहानियों के बीच-बीच में आपको कार्यक्रम की तैयारियों के बारे में बताता रहूंगा। वैसे तो सभी को पता चल ही चुका है कि इस बार का मिलन समारोह दिल्ली में है। ये दसवां मिलन समारोह है। लगातार दसवां। 
मुझे याद है कि मथुरा के मिलन समारोह में अपने बड़े भाई संजय सिंह ने चिंता जताते हुए कहा था कि संजय ने कह तो दिया है कि कार्यक्रम हर साल होगा, लेकिन कैसे होगा? उनके कहे में मेरे किए कमिटमेंट के प्रति चिंता थी। वो हमेशा मेरे बारे में उचित सोचते रहे हैं, हम लोग गलबहियां दोस्त होने के बाद भी एक दूसरे के प्रति बड़े भाई, छोटे भाई के व्याकरण को निभाते रहे हैं। मेरे दिल्ली आगमन के बाद से, मैंने किसी को सही मायने में अपने प्रति चिंता करते हुए पाया है, तो वो संजय सिंह ही हैं। 
एक गरम दल का सदस्य, दूसरा नरम दल का सदस्य। दोनों शंभू नाथ शुक्ल के नंदी बैल। 
हमारी तिकड़ी (ट्राइपोड) जनसत्ता नौकरी के दौरान प्रभाष जोशी को कई बार हमें रखने का दोषी मानने पर मजबूर करती रही होगी। हमारे जो मन में आता था, हम करते थे। किसी के नियंत्रण में नहीं थे, सिवाय शंभू नाथ शुक्ला के। 
खैर, संजय सिंह ने चिंता जताई थी। मुझे हर साल कार्यक्रम के शुरू होने पर उनकी वो बात याद आती है कि संजय ने कह तो दिया है, पर हर साल करेगा कैसे? 
मैं हर काम के लिए अपने मन में सिर्फ सोच लेता हूं, फिर ईश्वरवादी हो जाता हूं। मन में रहता है कि जब छोटे बच्चे की चिंता उसके मां-बाप करते हैं तो मेरी चिंता ईश्वर करेंगे, क्योंकि मैं उनका बच्चा हूं। अपने तो मां-बाप मुझे छोटी उम्र में छोड़ कर गए ही थे, ईश्वर के हवाले करके। 
मैं चाहे पूजा-पाठ करूं या न करूं पर मैं ईश्वर से कभी किसी प्रार्थना में कुछ नहीं मांगता। बस अपनी तमन्ना एनाउंस कर देता हूं। कई लोग कहते भी हैं कि कुछ भी काम पूरा होने से पहले कहना नहीं चाहिए, टोक लग जाती है, पर अपना सिस्टम उल्टा है। पहले एनाउंसमेंट, फिर ईश्वर पर अगाध भरोसा। 
जब पहली बार मैंने कहा था कि हम 12 नवंबर को दिल्ली में मिलेंगे, तो आपको पता है कि मैं ही दिल्ली में नहीं था। मुझे अचानक आस्ट्रेलिया जाना पड़ गया था और मैं कार्यक्रम के ठीक एक दिन पहले दिल्ली पहुंचा था। बाकी जो दिल्ली पहले मिलन समारोह में आए थे, उन्हें याद होगा कि कैसे राम जी की कृपा संजय सिन्हा पर रही। जवाहर गोयल भैया सब तैयारी करके बैठे थे। 
दूसरी बार मैं इटली में था और मथुरा मिलन समारोह केदो दिन पहले लौटा था, सब बांके बिहारी जी (मथुरा वाले भैया पवन चतुर्वेदी) जी ने कर दिया था।
तीसरे मिलन समारोह की तैयारी कमल ग्रोवर भैया ने कर के ऐसी रखी थी कि जब मैं पहुंचा तो सिर्फ मंच पर चढ़ कर मेरे पास कहानी सुनाने का जिम्मा भर था। 
यही भोपाल में हुआ। हमारे भावी विधायक (तब के नगर महापौर) आलोक शर्मा जी के छोटे भाई संजय शर्मा सब तैयारी करके बैठे थे। पटना में मुकेश हिसारिया ने तो धमाल ही मचा दिया था। और लखनऊ में टीम हरदोई ने मुझे कुछ करने ही नहीं दिया था। उसके बाद कोरोना में दिल्ली में ऑनलाइन कार्यक्रम हुआ था, हालांकि हम दस लोग कहीं एक जगह रुक कर कार्यक्रम में मास्क लगा कर लाइव होने का मजा लिए थे। वो भी कोरोना काल में राम जी की अथाह कृपा थी। 
उसके बाद फिर जबलपुर। फिर आगरा। आगरा में टीम आगरा का जलवा था। इतनी लंबी कथा के पीछे ये बताना है कि आदमी दिल से कुछ चाहे तो होकर रहता है। हम सिर्फ निमित्त मात्र होते हैं। कर्ता कोई और होता है। ये आस्था की बात है। 
इस बार भी दिल्ली में सारी तैयारी चल रही है। और कमाल ये कि मैं घूम रहा हूं। कभी दिल्ली, कभी छत्तीसगढ़, कभी राजस्थान और बाकी समय मध्य प्रदेश। मुझे अपने राम जी पर इतना यकीन है कि पूछिए मत। 
हां, तो मेरे प्यारे परिजनों, कार्यक्रम की तारीख नोट कीजिए। 24 दिसंबर। सुबह दस बजे से देर शाम तक। खाना-पीना (पानी) वहीं होगा। कार्यक्रम के लिए किसी परिजन से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। बस आा होता है। वो हर आदमी इस परिवार का सदस्य है जो संजय सिन्हा की कहानियां पढ़ता है। इसके लिए फ्रेंड लिस्ट में शामिल होने की कोई शर्त नहीं है, क्योंकि मार्क जुकर बर्ग ने फ्रेंड की सीमा तय की है, संजय सिन्हा ने इसे असीमित बनाया है। 
कई लोग पूछते हैं कि कौन लोग इसके मेंबर हैं। वो हर आदमी मेंबर है, जो रिश्तों को जीता है। दूसरों की फीलिंग्स को समझता है। बस। 
आप आइए। अपनों को साथ लाइए। देखिए कि मनुष्य कैसे भावनाओं से संचालित होता है। 
दिल्ली में तब सर्दी रहेगी। मौसम मस्त होगा। अपनी तैयारी कर लीजिए और मुझे बीच-बीच में बताते भी रहिए। इस बार सबसे पहली बुकिंग हरदोई से भरत पांडे भैया की आई है, उनके तुरंत बाद हरदोई के ही राकेश पांडे भैया की। 
उनके अलावा और कई लोगों के टिकट डिटेल आ चुके हैं। 
इस बार कार्यक्रम में कई गेम्स भी हैं। सब बताऊंगा, लेकिन बाद में। अभी तो लखनऊ मेल हरदोई से दिल्ली ठीक समय पर प्लेट फार्म नंबर एक पर आ रही है, चाय-चाय। गयम चाय। 
नोट- मुझे पता है कि चाय गरम होती है। लेकिन स्टेशन वाले पता नहीं क्यों आर को साइलेंट रख कर गयम बोलते थे। 

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