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चिकने रास्ते

 
फिसलना चिकने का दोष है। चिकने फर्श पर पांव रखना आदमी का दोष है। जवानी फिसलन भरी होती है। जवानी में फिसल कर दिल टूटता है और बुढ़ापे में फिसलने पर सब कुछ लूट जाता है। फिसलन भरी राह से बचने में ही भलाई है।
Sanjay Sinha उवाच
चिकने रास्ते
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कल एक दुकान में गया था। टाइल्स की दुकान थी। वहां कंपनी ने शो रूम में एक जूता एक टाइल के टुकड़े पर रखा था। संजय सिन्हा ऐसे दृश्य देख कर रुक जाते हैं। टाइल की दुकान में जूता? 
मैं रुक कर देखता रहा। एक सेल्समैन सामने आया। “सर, आपकी क्या मदद कर सकता हूं?”
“जूते भी बेचते हो क्या?”
“नहीं सर। ये तो टाइल्स की दुकान है।”
“फिर ये जूता?”
सेल्समैन ने बताया कि सर, ये जूता रखा है फिसलन चेक करने के लिए। हम इस जूते के माध्यम से ये बताना चाहते हैं कि अगर आपने ये वाली टाइल खरीदी तो इसमें फिसलन है। ये वाली टाइल लेंगे तो इसमें फिसलन नहीं होगी। और उसने मुझे दोनों तरह के टाइल्स पर बारी-बारी से जूते रख कर दिखलाया। एक टाइल पर जूता फिसल रहा था। दूसरे पर रुका था। थमा था। 
मैं बहुत हैरान होकर देख रहा था। 
बहुत पहले मुझे लगता था कि ये जूतों का दोष होता है, जो वो फिसलते हैं। कल समझ में आया कि ये फर्श का दोष होता, जहां फिसलन होती है। वैसे जूते भी ऐसे आते हैं, जो चिकने फ़र्श पर भी खुद को रोक लेते हैं। पर आम जूते उस फर्श पर खुद को नहीं रोक पाते।
टाइल बेचने वाला बता रहा था कि सर, बाथरूम और बहुत सी जगहों पर लोग गलती से फिसलन वाली टाइल्स लगा लेते हैं और गिर जाते हैं। बड़े हादसे हो जाते हैं। टाइल्स बेचने वाले कुछ भी बेच देते हैं। हम सामने प्रयोग करके दिखला रहे हैं कि कौन-सी टाइल्स होनी चाहिए, ताकि फिसलें नहीं।
पर जिस पर जूता फिसल रहा है, वो चमचमा रहा है। नहीं फिसलने वाली टाइल तो रुखड़ी और…
उसने कहा, ये सही है सर। चिकनी टाइल्स पर ही आदमी फिसलता है।
यहीं से शुरु होती है ज़िंदगी की कहानी।
नहीं फिसलना एक फलसफ़ा है। चिकनी, चमचमाती टाइल्स किसे सुंदर नहीं लगतीं। पर वो टाइल्स ही क्या जिस पर आदमी फिसल जाए? 
मैं बहुत से लोगों को जानता हूं, वो चिकनी और चमचमाती टाइल के पीछे भागते हैं। पूरी जवानी उस पर संभाल कर कदम रखते हैं, पर कभी न कभी ऐसा होता ही है, जब वो उस पर फिसल कर गिर जाते हैं। फिर बहुत चोट लगती है। कई बार तो इतनी कि फिर कभी नहीं उठ पाते हैं। 
मेरे एक परिचित को ऐसी ही चमचमाती टाइल्स भा गई थी। अच्छी नौकरी में थे। चमचमाती नौकरी। चमचमाती गाड़ी। चमचमाती टाइल्स। मैंने एक दो बार टोका भी था, किसी दिन गिर जाएंगे। फिसल जाएंगे। चोट लगेगी। पर वो कहां मानते? कौन मानता है? आदमी एक बार जब नहीं गिरता है तो उसे लगता है कि फिसलन भरी टाइल्स सिर्फ दूसरों को गिराती हैं, वो नहीं गिरेंगे। 
वो चमक में खोए रहे। पता नहीं कितनी चमचमाती टाइल्स में खोए रहे। 
पिछले दिनों सुना कि इकोनॉमिक आफेंस ब्यूरो वालों ने चमकीली टाइलों वाले घर पर धावा बोला। 
आगे कुछ कहने की ज़रूरत है क्या? 
मैंने कहा था कि ज्यादा चमकीली चीज़ में जूते फिसल जाते हैं। जीवन में कर्म का टाइल ऐसा रखें कि न फिसलें। फिसलना आसान होता है। थमे रहना मुश्किल। पर उसके लिए हम जो फर्श चुनते हैं, उसका ख्याल रखना होता है। जवानी की बात और होती है, बुढ़ापे की मुश्किल और। 
आदमी गिरता कब है? पहले दिन नहीं। वो गिरता ही तब है, जब उसे अथाह आत्मविश्वास हो जाता है कि वो नहीं गिरेगा। बस उसी दिन धोखा हो जाता है। 
बचिएगा चिकने रास्तों से। ज़िंदगी की टाइल्स थोड़ी कम चमकीली हों पर फिसलन वाली नहीं होनी चाहिए। इसी में सुरक्षा है, इसी में फायदा है। बाकी जैसी मर्जी। बचना आपके हाथ में है, फिसलना आपके हाथ में है।


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