Sudhir Kumar Jha
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चैनलों पर क्या परोसना है इस पर जिसका नियंत्रण है वो ही तय करता होगा कि क्या दिखाना है क्यों दिखाना है। देखने वाला भी टाइम पास के लिए कुछ भी देख लेता है। कभी हंस लेता है कभी रो देता है कभी चौंक जाता है कभी खीझ जाता है। इससे ज्यादा वो कर भी क्या सकता है।
Sanjay Sinha उवाच
चिंता की बात तो यही है
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यह मीडिया का जादू है जिस कारण आप जान गए हैं कि कोई आदमी अगर मोटा है तो क्यों मोटा है? ये मीडिया का ही जादू है कि आप जान गए कि किसी की मम्मी ने बेटे की खुशियों के लिए पूरा जंगल बसा दिया तो क्यों बसा दिया? ये मीडिया ही है कि आप वो सब अचानक जानने लगे हैं, जिसे आप नहीं जानते तो आपकी सेहत पर बहुत फर्क पड़ जाता।
अचानक आपका जेनरल नॉलेज इतना प्रखर हो गया कि आप आज अगर आईएएस की परीक्षा में बैठें और आपसे मोटापे, पतलापे पर सवाल पूछ लिया जाए आप पूछने वाले से अधिक बता देंगे। अगर पूछा जाए कि जंगल क्यों और कैसे बसते हैं तो आप पूरा शोध लिख देंगे। आज आपके पास ज्ञान है। वो ज्ञान जिसे आप तक पहुंचाया गया है। पत्रकारों को बहुत मेहनत करनी पड़ी है ये सब पूछने के लिए, क्योंकि ये सब जानना ज़रूरी है।
पूरा अमेरिका मोटा है। कोई नहीं पूछता। असल में किसी को परवाह ही नहीं। सभी जानते हैं कि वहां आदमी उठते ही खाने लगता है। कमरे से निकलते ही गाड़ी में बैठ जाता है। शाम ढलते ही मयखाने में बैठ जाता है। रात में जल्दी खाना खा कर फिर पी कर सो जाता है।
संसार में जिन्हें मोटा नहीं होना होता है, वो दौड़ते हैं। कम खाते हैं। रात-दिन एक कर देते हैं खुद को पतला दिखलाने के लिए। हां, कुछ लोग किसी बीमारी के कारण मोटे हो जाते हैं। कुछ लोग शरीर की कोशिकाओं की बनावट के कारण कुछ भी खाकर पतले ही रहते हैं। लेकिन हम न किसी की मोटापे पर शोध करते हैं, न किसी के पतलेपन पर। इस पर जो शोध होना था, हो चुका है।
बचपन में संजय सिन्हा ‘मोटू-पतलू’ कॉमिक बुक पढ़ते थे। दोनों कैरेक्टर अपनी जगह अच्छे लगते थे। कभी मन में ये दिलचस्पी जागी ही नहीं कि कोई मोटा है तो क्यों है? कोई पतला है तो क्यों है? कोई क्यों पूछेगा किसी से कि आप मोटे क्यों, पतले क्यों, लंबे क्यों, नाटे क्यों, गोरे क्यों, काले क्यों? सभ्य समाज में हमें यही सिखलाया गया है कि शरीर चर्चा का विषय नहीं।
नॉर्थ कोरिया के राजा (लोकतांत्रिक प्रकिया से, वोट से चुने गए) किम जोंग के मोटापे को देख कर अपने संपादक काल में एक शो का नाम हमने रख दिया था ‘मोटू तानाशाह’।
हालाकि मैंने अपने मन से उन्हें मोटू नहीं कहा था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने उन्हें ‘फैट मैन’ कह कर संबोधित किया था। मैंने सिर्फ फैट को हिंदी में अनुदित किया था। संसार किम को डिक्टेटर कहता था तो संजय सिन्हा ने डिक्टेटर का अनुवाद तानाशाह लिखा था।
लेकिन नोटिस आ गया था। मुझे रत्ती भर उम्मीद नहीं थी कि नॉर्थ कोरिया से भी मेरे जैसे संपादक के नाम नोटिस आ जाएगा। कहा गया था कि कोई मोटा है तो क्या उसके मोटापे पर सवाल होगा? मोटापे पर सवाल पूछना मानहानि का मामला था। मुझे बाकायदा माफी मांगनी पड़ी थी।
मेरी कंपनी के चेयरमैन ने मुझे बुला कर टोका था, “संजय ऐसे सवाल नहीं उठाए जाते हैं? ये गलत है। कोई मोटा है, पतला है तो इसमें खबर क्या है? शरीर पर सवाल ‘बॉडी शेमिंग’ है।’
मैं समझ गया था। समझदार को इशारा काफी होता है।
बॉडी शेमिंग को लेकर भारत में कोई कानून नहीं है। लेकिन ये मानहानि के तहत अपराध है। बॉडी शेमिंग में आपके खिलाफ मानहानि का केस हो सकता है। अभी नया कानून लागू नहीं हुआ है, लेकिन पुराने कानून के तहत इसमें आईपीसी की धारा 399 के तहत दो साल तक की सजा हो सकती है।
अब प्रश्न ये है कि किसी ने ऐसा प्रश्न किया ही क्यों होगा कि आप मोटे थे। आप पतले कैसे हुए?
ये मीडिया को दिए गए सवाल होते हैं। अपनी सफाई में। ताकि स्थिति साफ हो सके। अन्यथा कोई ऐसे सवाल पूछेगा ही क्यों? किसकी हिम्मत है?
मीडिया स्थिति साफ कर देती है। मन के संताप मिटा देती है। वो वही पूछती है, जिसका जवाब दे कर आदमी खुद को मुक्त करना चाहता है। तमाम टीवी शो, जिसमें बड़े लोगों को इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है, उसमें तमाम तरह के दोषों से क्लीन चिट की व्यवस्था की जाती है।
अचानक सारी अच्छाई सबके सामने आने लगती है। सारी कमियां खूबियों में बदलने लगती है।
अब ये प्रश्न उठता है कि संजय सिन्हा ये सब क्यों लिख रहे हैं?
बस इसलिए कि अचानक सबको सब पता चलने लगा है। बस यही नहीं पता कि ऐसे प्रश्न राष्ट्र के लिए क्यों ज़रूरी हैं?
क्या यही मुद्दा हैं। कोई मोटा क्यों? हाथी क्या खाते हैं? क्या देश यही जानने को बेचैन है?
अगर सचमुच यही राष्ट्र की चिंता है, तो फिर आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। चिंता की बात तो यही है।
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