सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
भक्त इसलिए प्रसन्न नहीं रहते कि उनके जीवन में विषमताएं नहीं रहती हैं अपितु इसलिए प्रसन्न रहते हैं कि उनके जीवन में धैर्य रहता है। भक्ति हमारे आत्मबल को सशक्त करती है। भक्तिवान जीवन धैर्यवान जीवन भी बन जाता है। जिस जीवन में प्रभु की भक्ति नहीं होगी, निश्चित समझिए उस जीवन में धैर्य भी नहीं पनप सकता।
भक्त के जीवन में किसी भी प्रकार की विषमताओं से निपटने के लिए अपने इष्ट अपने आराध्य का नाम अथवा विश्वास का बल होता है। भक्त के जीवन में परिश्रम तो बहुत होता है मगर परिणाम के प्रति ज्यादा उतावलापन नहीं होता है। वो इतना जरूर जानता है कि मेरे हाथ में केवल कर्म है, उसका परिणाम नहीं।
विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी यदि कोई हमें प्रसन्नता के साथ जीना सिखाता है तो वो केवल और केवल हमारा धैर्य ही है। धैर्य के समान आत्मबल प्रदान करने वाला कोई दूसरा मित्र नहीं और भक्ति के बिना जीवन में धैर्य का आना भी संभव नहीं। भक्तिमय जीवन की वाटिका में ही प्रसन्नता के पुष्प खिलते हैं।
सुरपति दास
इस्कॉन
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