सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
विनम्रता अथवा सहनशीलता ही मानव जीवन का सबसे बड़ा सामर्थ्य है। सामर्थ्य का अर्थ यह नहीं कि आप दूसरों को कितना झुका सकते हो अपितु यह है, कि आप स्वयं कितना झुक सकते हो। निसंदेह सामर्थ्य के साथ विनम्रता का आ जाना ही तो जीवन की महानता है क्योंकि जहाँ समर्थता होती है, वहाँ प्रायः विनम्रता का अभाव ही देखा जाता है।
सामर्थ्य आते ही व्यक्ति के अन्दर सम्मान का भाव भी जागृत हो जाता है। सदैव इस बात के लिए प्रयासरत रहें कि हम सम्मान पाने की लालसा रखने वाले नहीं, सम्मान देने वाले बन सकें। बल का उपयोग स्वयं सम्मान प्राप्त करने के लिए नहीं अपितु दूसरों के सम्मान की रक्षा के लिए करो।
भला वह सामर्थ्य भी किस काम का जो व्यक्ति की नम्रता का हरण व उसके अहंकार को पुष्ट करता हो। अत: झुक कर जीना सीखो ताकि दूसरों के आशीर्वाद भरे हाथ सहजता से आपके सिर तक पहुँच सकें। बिना झुके विवाद मिल जाएगा, आशीर्वाद नहीं।
सुरपति दास
इस्कॉन
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