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इक्विटी और ट्रस्ट का कानून

 
अपराध का जन्म ही होता है धोखा छल कपट लोभ लालच घृणा द्वेष अहंकार क्रोध गैरबराबरी के कोख से। हृदय दया करुणा प्रेम सेवा परोपकार समानता के भाव से भरा हो तो अपराध की सम्भावना न के बराबर होगी। अपराध का दण्ड विधान दो प्रकार के हैं एक सांसारिक एक ईश्वरीय। सांसारिक दण्ड से किसी प्रकार बच भी गए तो ईश्वरीय दण्ड से बच पाना मुश्किल है।
Sanjay Sinha उवाच
इक्विटी और ट्रस्ट
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कानून के सिलेबस में दो विषय बहुत रोचक हैं। विषय का नाम है इक्विटी और ट्रस्ट। आप इस विषय को जानते हैं। बस संजय सिन्हा आपको जैसे ही इनके कानूनी अर्थ को बताएंगे, आप समझ जाएंगे वो कहना क्या चाहते हैं।
इक्विटी का अर्थ है समता। यानी बराबरी। और ट्रस्ट का अर्थ है विश्वास। 
कितना आसान है संजय सिन्हा की क्लास में कानून को समझना। 
मैंने आपसे कई बार कहा है कि मनुष्य भावनाओं से संचालित होता है, कारणों से नहीं। कारणों से मशीनें चला करती हैं। 
कानून का ये अध्याय इक्विटी और ट्रस्ट बस इतना ही समझाता है, इतना ही बताता है। बहुत मोटी-मोटी पोथी के ज्ञान को संजय सिन्हा कितने कम में समेट कर आपके सामने ले आए हैं। 
भारत में पहले इक्विटी और ट्रस्ट कोर्ट होते थे। लेकिन धीरे-धीरे इक्विटी और ट्रस्ट के सभी नियमों को भारतीय संविधान में समेट लिया गया। बस मान भर लिया गया कि कानून करुणा से संचालित होगा। 
यही होगा मनुष्य के विकास का अंतिम लक्ष्य। 
संसार के हर जंग की यात्रा का अंतिम स्टेशन बराबरी और विश्वास है। 
अगर आदमी इन दो नियमों को जीवन में अपना ले कि हमारी नज़र में सब बराबर हैं और हम किसी को धोखा नहीं देंगे तो सोचिए, सारी अदालतें खत्म नहीं हो जाएंगी? 
मैं किताब लिखूंगा। लॉ की। किताब एक ही पंक्ति में पूरी हो जाएंगी। 
करुणा सर्वोपरि।
इक्विटी और ट्रस्ट का कानून बना ही है बराबरी और विश्वास के लिए। ये दोनों कानून कानून की किताब में समाहित ही हुए, दया के सिद्धांत पर। 
पहले कानून क्रूर था। पहले कानून सम्राट का आदेश होता था। सम्राट ने कह दिया, कानून हो गया। 
प्रजा मान बैठी थी कि सम्राट ही अंतिम सत्य है। 
पर बदलते समय में करुणा और दया को कानून में जगह मिली। माना गया कि अपराध अपराध में फर्क होता है। हर अपराध के लिए प्रायश्चित का प्रावधान होता था। यही सच है, यही सच था कि अपराध कपट से होते हैं, अपराध भूल वश होते हैं। बस इतने में सारा कानून समाहित था। 
दोष की धाराएं निर्धारित थीं। 
अगर अपराध कपट से हुआ है तो दण्ड का अलग प्रावधान। अगर अपराध भूल वश हुआ है तो दण्ड का अलग विधान। 
इससे आगे न कोई लॉ है, न था, न होगा। 
अगर आपने सच में बराबरी और विश्वास के नियम को समझ लिया तो मेरा यकीन कीजिए, आपसे कोई अपराध होगा ही नहीं। और जो कभी हुआ भी तो भूल वश हो सकता है, कपट वश नहीं। 
संसार में सबसे बड़ा अपराध कपट है। धोखा। 
धोखा संसार में सबसे निंदनीय कृत्य है। धोखा देने का उद्देश्य कितना भी पवित्र हो, धोखा क्षम्य नहीं होता। कहते हैं भगवान राम जिस पर एक बार हाथ रख दें, उसके सारे पाप कट जाते हैं। पर सोचिए, रावण के भाई विभीषण ने बहुत पवित्र उद्देश्य के लिए ही सही अपने भाई के साथ धोखा किया और राम का साथ भी उसे मिला लेकिन स्वंय प्रभु राम उस दाग को उसके सिर से नहीं मिटा पाए। धोखे का दाग नहीं मिटता है। भूल का दाग मिट जाता है। 
संजय सिन्हा हाफ एलएलबी आपसे कहना चाहते हैं कि कभी किसी को धोखा मत दीजिएगा। भूल कर भी नहीं। धोखा ही कानून का उल्लंघन है। धोखा ही पाप है। धोखा ही अपराध है। 
कानून की किताब में अभी तक कुल 511 धाराएं हैं। पर हर अपराध घुमा फिरा कर धोखा ही है। 
कपट से बचिए। खुद को अपराध मुक्त रखिए। सुबह जागिए, उठ कर आईना देखिए। संसार का सच अपने चेहरे में जितना साफ दिखता है, किसी दूसरे के चेहरे में नहीं। किसी किताब में नहीं।
नोट- संजय सिन्हा ने ये सब क्यों लिखा है पता नहीं। लगता है लॉ पढ़ते-पढ़ते दिमाग में यही सब जमा हो गया है। पर मेरे लिखे को आप समझिएगा। समझिएगा कि संसार में हर कानून बराबरी और विश्वास का पाठ पढ़ाता है। 
आप किसी से कम नहीं। सभी बराबर हैं। आप किसी को धोखा मत दीजिएगा। आपको कोई धोखा मिले तब भी नहीं। 
इक्विटी प्राकृतिक न्याय है।

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