Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हंसने से बड़ा कोई टॉनिक नहीं

 
हंसने से बड़ा कोई टॉनिक नहीं। रिश्ते ऐसे ही बनाइए जो हंसते हंसाते हों। जिंदगी हंसी खुशी में कट जायेगी।
Sanjay Sinha उवाच
और टांका खुलते-खुलते बचा
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फिर वही होते-होते बचा जो कई साल पहले होते-होते बचा था। कायदे से गलती मेरी थी। मुझे लगने लगा है कि कुछ दिनों में देश भर के डॉक्टर मुझे पहचान जाएंगे और बाहर तख्ती लगा देंगे कि आपरेशन के बाद मरीज से संजय सिन्हा दो दिन बाद ही मिल सकते हैं, तुरंत नहीं।
आपको याद होगा कि पटना में मेरे पिताजी के पेट का आपरेशन हुआ था और मैं अपने एक दोस्त के साथ पिताजी की तीमारदारी में लगा था। आपरेशन के बाद पिताजी को जब कमरे में शिफ्ट किया गया तो थोड़ी देर की चुप्पी के बाद हम दोनों दोस्त गप करने लगे। पिताजी गहरी नींद (बेहोशी) में थे। बातचीत में मैंने अपने दोस्त को एक चुटकुला सुनाया। राम जाने कैसे चुटकुला नींद में पिताजी के कानों तक पहुंच गया और पिताजी अचानक जोर-जोर से हंसने लगे। 
पिताजी हंस रहे थे, तभी डॉक्टर साहब कमरे में आ गए। हम तीनों हंस रहे थे, डॉक्टर साहब बिगड़ गए। 
“आप लोग ये क्या कर रहे हैं? मरीज के पेट का टांका खुल जाएगा।”
और फिर आगे की कहानी यही है कि हमें तत्काल बाहर किया गया। लंबी कहानी थी, कम में सुना कर नई कहानी की ओर चल रहा हूं। 
हुआ ये कि जबलपुर में मेरे मित्र वकील Rajendra Kumar Gupta के पेट का आपरेशन हुआ। आपरेशन के तुरंत बाद मैं हॉस्पिटल पहुंच गया। आपरेशन के बाद वकील साहब को कमरे में लाया गया। वो दवा के असर में गहरी नींद में थे।
वकील साहब की बिटिया से मेरी बातचीत शुरू हुई। बिटिया ने कहा कि डॉक्टर ने कहा है अभी दवा का असर रहेगा। कुछ अधिक देर तक ही रहेगा।
मैंने बिटिया से कहा कि पापा नशा पानी नहीं करते न। अगर कभी-कभी एकाध पैग लिया करते तो इतना असर न होता दवा का। आदमी को थोड़ा नशा-पानी करते रहना चाहिए ताकि दवा का असर ऐसा भी न हो…
राम जाने फिर क्या क्या हुआ जो संजय सिन्हा की बात गहरी नींद में सोए वकील साहब के कानों तक पहुंच गई और बंद आंखों के साथ ही वो हंसने लगे। मुंह पर आक्सीजन मास्क और ये हंसी।
ओ त्तेरे की… संजय सिन्हा घबरा गए। 
वकील साहब की बिटिया ने पापा को किसी तरह संभाला। “पापा अधिक मत हंसो, टांका खुल जाएगा।”
मैंने भी वकील साहब को रोका। “भाई, मैं चला। अभी डॉक्टर साहब आएंगे और कहेंगे फिर आ गए हंसाने।”
मैं वहां से निकला और घर भागा चला आया। मन में तय करके कि जब तक मरीज होश में न आ जाए, संजय सिन्हा अब हॉस्पिटल नहीं जाएंगे। 
कल वकील साहब की तबियत थोड़ी ठीक हुई तो मेरे पास फोन आया। “संजय भैया, क्या कहानी लिखी है आपने। मजा आ गया। शादी के पचास लड्डू हैं बने हुए…” 
मैं समझ गया कि मरीज ठीक हैं। 
मैं फिर अस्पताल पहुंच गया। वहां मरीज की बिटिया ने कहा कि पापा फोन आजकल फोन नहीं देखते। लेकिन सुबह नींद खुलते ही कहते हैं कि संजय सिन्हा की कहानी पढ़ कर सुनाओ। आज की कहानी पढ़ कर एकदम हरे हो गए हैं। उठ कर बैठ गए हैं। लग रहा है ठीक हो गए हैं।
मैंने कह दिया है कि जैसे संतोष की देवी की पूजा के लिए संतोषी माता की कथा सुनाई जाती है,  जैसे सत्य की पूजा के लिए सत्यनारायण भगवान की कथा सुनाई जाती है और कथा में कलावती बहन का जिक्र आता है, एक दिन खुशी और रिश्तों की पोथी भी छपेगी और अस्पताल में मरीजों को मुफ्त बांटी जाएगी। हर मरीज को संजय सिन्हा की कहानी सुनाई जाएगी। डॉक्टर कहेंगे कि दवा के साथ दिन में एक बार संजय सिन्हा की कथा सुनिएगा तो जल्दी ठीक हो जाइएगा। 
आप सब लोग जो रोज संजय सिन्हा की कथा सुनते हैं, दिन भर ठीक रहते हैं न!
खुशी और रिश्तों की जय, खुशी और रिश्तों की जय…
नोट- 
1. पहली तस्वीर में बेहोशी में हंसते मरीज। दूसरी तस्वीर में रिश्तों की कथा सुनकर उठ बैठे मरीज़।
2.. मरीज पूरी तरह ठीक हो कर घर पहुंच गए हैं। और आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि डॉक्टर साहब ने कहा है आपरेशन में जो टांके लगे हैं, उन्हें कटवाने के लिए अस्पताल मत आइएगा। वो कंपाउंडर घर भेज देंगे और वो वहीं टांका काट देगा। डॉक्टर साहब धीरे से कहा है कि संजय सिन्हा की कहानी जो भी रोज सुबह-सुबह सुनेगा उसे अस्पताल आने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। 


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