संसार में सबसे कमाल की बात यही है कि जो कुछ नहीं जानता वही ताल ठोक कर सबसे अधिक दावा करता है कि उसने सब कुछ जान लिया है। संसार नेत्रहीनों से भरी पड़ी है। नेत्र तो बस उनके पास है जिनकी प्रज्ञा चक्षु खुली हुई है।
Sanjay Sinha उवाच
हाथी कैसा है?
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किसी ने हाथी को देखा नहीं था। असल में उन्होंने कुछ नहीं देखा था। वो देख ही नहीं सकते थे। लेकिन कहानी है हाथी की।
ना, ना। कहानी है उन छह लोगों की, जिन्होंने हाथी को छूकर अपनी नज़र से हाथी का बखान किया था।
पहले ने कहा था कि हाथी एक खंबे की तरह होता है। उसने हाथी का पांव छुआ था। दूसरे ने कहा था कि हाथी तो रस्सी है। उसने पूंछ छू कर बता दिया था। तीसरे ने हाथी को पेड़ का तना कहा था, क्योंकि उसकी हथेलियों ने सूंढ़ को छुआ था।
चौथे ने हाथी के कान को छूकर बता दिया था कि वो तो पंखे की तरह होता है। पांचवा और कमाल का था। उसने कहा था, "मूर्खों, हाथी दीवार की तरह होता है।"
वो हाथी का पेट पकड़ कर खड़ा था।
और छठा? वो चिल्ला रहा था कि हाथी एक कठोर नली की तरह होता है। पता नहीं, वो क्या पकड़ कर हाथी को बयां कर रहा था।
संजय सिन्हा ने जब पहली बार ये कहानी सुनी थी तो हंसी आई थी। फिर दुख हुआ था। सारे अंधे थे। पर सभी को गुमान था कि वो सच जानते हैं। वो सच देख सकते हैं। सभी के पास अपने अनुभव थे। सभी के पास अपनी समझ थी। सभी जानकार थे।
और हाथी?
वो मस्त था। मन ही मन सोच रहा था कि दुनिया कैसे-कैसे अंधों से पटी पड़ी है। इन्हें सच दिखता ही नहीं। हथेली के अनुभव से सब ज्ञानी बने बैठे हैं। जिसने हाथी को देखा था, उसने कई कहानियों के जरिए हाथी का सच बयां करना चाहा। उसने चाहा कि वो बता दे कि हाथी होता कैसा है? लेकिन कोई उसकी सुनने को तैयार नहीं था। उनकी नज़र में (जो थी ही नहीं) हाथी सब कुछ था, सिवाय हाथी होने के। वो रस्सी, दीवार, तना, पेड़, सूरज, चांद, सब था। लेकिन वो नहीं था, जो था।
वो संपूर्ण रूप से सिर्फ झूठ था। उसका सच उन्हें कैसे मालूम होता? संजय सिन्हा ने कई बार बताना चाहा कि ये हाथी है। मोटे पेट वाला। पर कौन किसकी सुनता है?
हाथी बखान आज भी जारी है। हाथी मस्त बैठा है। उसे मालूम है कि जब तक ऐसे नेत्रहीन रहेंगे, तब तक उसका सच किसी को मालूम नहीं होगा। हाथी निश्चिंत था। वो जानता था कि उसकी पोल खुलने वाली ही नहीं है। कोई पूरा उसे देख ही नहीं सकेगा। बताने वाले चाहे लाख कोशिश कर लें, हाथी का सच उन्हें तो पता नहीं चलने वाला है।
पकड़े रहो कान, सूंढ़, पूंछ, पेट।
पर ध्यान रहे, हाथी अपना सच चाहता तो बता ही देता। पर क्यों बताता?
अब प्रश्न है कि क्या हाथी का सच वो कभी नहीं जान पाएंगे? किसी ने अगर उनसे पूछ ही लिया तो वो क्या कहेंगे? जीवन भर यही कि हाथी ऐसा है, वैसा है? हाथी कैसा है?
नोट -
1. सुनिए, हाथी वैसा बिल्कुल नहीं है जैसा नेत्रहीनों की हथेलियों ने देखा है।
2. हाथी कैसा भी हो बड़ी बात नहीं। बड़ी बात है हाथी के विषय में गलत जानकारी को मन में बिठा कर जीवन जीना।
3. जीवन में सच जानना चाहिए।
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