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हिटलर तुम कितने दयालु थे

 


मुझे चार बजकर पचपन मिनट पे उठ कर पंद्रह मिनट के लिए बाहर निकलना ही पड़ता है। उतनी देर तक नाक जैसे ही बाहरी वायु के संपर्क में आता है वैसे ही छींकते छींकते पेट छाती में दर्द देने लगता है। ये प्रदूषण के दम घोंटू वातावरण का ही असर है कि जीना मुहाल है। यहां तो कोई एक वक्तव्य दे कर मलहम लगाने वाला भी नहीं है। दिल्ली नरेश ने ऑटोमैटिक शीशमहल बना कर अपना जीवन तो सफल कर लिया अब दुनियां जाए भाड़ में उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। अब ईश्वर ही एक मात्र सहारा है।
Sanjay Sinha उवाच
हिटलर तुम कितने दयालु थे
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हिटलर मूर्ख था। उसने लोगों को मारने के लिए जर्मनी में जगह-जगह गैस चैंबर बनवाए और खुद के ऊपर हत्यारा होने का दंश लिया। अगर हिटलर समझदार होता तो वो किसी एक शहर की हवा में प्रदूषण फैलवाता। इतना प्रदूषण कि मौसम पीला हो जाता। आसमान छुप जाता और हवा में वो सारे कण घुलवा देता, जिससे कैंसर, ब्रेन स्ट्रोक, दमा, हार्ट अटैक जैसी बीमारियां होती हैं। ऐसा होता तो आदमी बिना किसी पर मृत्यु का आरोप मढ़े हुए कुछ दिनों में बीमार होकर मर जाता।  
अगर हिटलर को आदमी से नफरत थी और वो उन्हें मारना चाहता था तो इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता था। एक साथ हज़ारों, लाखों करोड़ों लोगों को बीमार करके धीरे-धीरे मार देने से उसका मंसूबा भी पूरा हो जाता और इतिहास उस पर कोई दाग भी नहीं लगने देता। 
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की दुनिया में हिटलर सबसे बदनाम शासक पैदा हुआ। संजय सिन्हा को यकीन है हिटलर के पास सही सलाहकार नहीं थे। होते तो जहां के लोगों को खत्म करना होता वहां आसपास की आबोहवा को प्रदूषित करवा कर पूरा शहर ही गैस चैंबर बनवा देने की सलाह देते, बजाए किसी हत्यारे की तरह गुप्त गैस चैंबर बनवाने के। ऐसा करने से हिटलर का मानव वध संकल्प जल्दी पूरा हो जाता और उस पर हत्या का पाप भी नहीं लगता। 
किसी को मारने के लिए आबोहवा जहरीली कर देने से बेहतर कुछ और हो ही नहीं सकता है। ऐसा करने से कई विभागों की कमाई भी होती है और हकीकत में  सांप भी मर जाते हैंऔर लाठी भी नहीं टूटती है। 
अच्छा शासक वो होता है जो जनता में ये भ्रम कायम रखने में कामयाब होता है कि वो जनता का हितैषी है। जनता को भ्रम में रखना होता है कि शासक उनसे प्रेम करता है। जनता और षासक के बीच कभी प्रेम नहीं होता है। जनता शासक की टूल होती है। बस टूल। शासक जनता का इस्तेमाल करती है। वैसे ही जैसे कोई मुर्गी पालक मुर्गी को पालता है, उसे दाना देता है और फिर उनका सौदा कर देता है। मैंने आजतक किसी शासक को प्रदूषण से मरते नहीं सुना है। जनता को मरते देखा है। 
इस तरह मार देने से सारा दोष या तो जनता पर जाता है या फिर श्री यमराज पर। जो प्रदूषण का कारक होता है, वो ज्ञान देने वाला मसीहा बन जाता है कि ये मत करो, वो मत करो। अर भाई तो क्या करें। सांस न लें? 
कहते हैं आदमी का पुनर्जन्म होता है। हिटलर अगर जो कहीं फिर जन्म ले चुका हो तो उसे यहां आना चाहिए। देखना चाहिए कि यहां किस तरह हवा में जहर घोल कर धीरे-धीरे आदमी को मारा जाता है। बिना हिंग फिटकिरी के रंग चोखा आता है। 
कोलकाता में प्रदूषण है। पटना में प्रदूषण है। दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा में प्रदूषण है। दिल्ली में तो मैं खुद हूं और आसमान को देख कर मेरी आंखों से पीले आंसू बहने लगे हैं। 
हे हिटलर तुम कहां हो? 
तुमने आदमी को सजा-ए-गैस मौत दी। बहुत आसान मौत दी। इतिहास तुम्हें चाहे जितना क्रूर माने, संजय सिन्हा की नज़रों में तुम दयालु थे। तुम चाहते तो घुटा-घुटा कर कई दिनों में आदमी को मार सकते थे। तुम्हारा कोई क्या बिगाड़ लेता? तुम्हें करना क्या था? अपने घर में हवा शुद्धिकरण मशीन लगा कर पूरे शहर को पीला कर देना था। वैसा ही जैसा अभी दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव का हो गया है। 
दोष किसी और का नहीं। दोष हमारा है। हां हुक्मरानों ने हमारे दिमाग में यही भर दिया है। दोषी हम हैं। अपनी जान देने के दोषी।
नोट- 
1. डॉक्टर Pushpraj Patel जी, मुझे माफ कीजिएगा। मेरे दिल की हालत ठीक रखने के लिए आपने मुझे रोज़ सुबह टहलने के लिए कहा है। मैंने वादा भी किया था कि रोज़ सुबह टलहूंगा। लेकिन मैं नहीं टहल पा रहा हूं। यहां दिल्ली में टहलने से दिल ठीक होगा लेकिन फेफड़ा दुखता है। 
2. पांच से मेरे फैन लक्ष्य की कहानी मुझे आपको सुनानी थी। लेकिन ये पीला आसमान मुझे कुछ और सुनाने ही नहीं दे रहा है। तुम्हारी कहानी सुनाऊंगा लक्ष्य, जरा आसमान को नीला होने दो।
3.तस्वीर मैंने अभी अपने फ्लैट की खिड़की थोड़ी-सी खोल क


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