सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
बुद्धि स्थिर करने के उपाय है कि इन्द्रियों के दास होकर नहीं, स्वामी होकर रहना चाहिए। संयम के बिना सुख एवं प्रसन्नता प्राप्त नहीं हो सकती। नित्य नए-नए भोगों के पीछे दौड़ने का परिणाम दुःख और अशान्ति है। इन्द्रियों पर संयम किया जाय। इन्द्रियों का वेग तथा प्रवाह में बह जाना धर्म नहीं है।
किसी भी साधन योग, जप, तप, ध्यान इत्यादि का प्रारम्भ संयम बिना नहीं होता। संयम के बिना जीवन का विकास नहीं होता। जीवन के सितार पर हृदय मोहक मधुर संगीत उसी समय गूँजता है, जब उसके तार नियम तथा संयम में बँधे होते हैं।
जिस घोड़े की लगाम सवार के हाथ में नहीं होती, उस पर सवार करना खतरे से खाली नहीं है। संयम की बाघ डोर लगाकर ही घोड़ा निश्चित मार्ग पर चलाया जा सकता है। ठीक यही दशा हृदयरूपी घोड़ा की है। विवेक तथा संयम द्वारा इन्द्रियों को आधीन करने पर ही जीवन यात्रा आनन्दपूर्वक चलती है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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