जिस दिन किसी भी घर में रसोई बंट जाता है उसी दिन घर बंट जाता है, दिल बंट जाता है प्रेम बंट जाता है, मर्यादा भंग हो जाती है और फिर दूरियां बढ़ती ही चली जाती है। जहां प्रेम नहीं वो परिवार नहीं। प्रेम केयर कंसर्न मर्यादा ईंट चुना गाड़ा होता है जो परिवार को जोड़े रहता है। जहां प्रेम नहीं वो परिवार नहीं।
Sanjay Sinha उवाच
बस चालीस दिन बाद
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आज से ठीक एक महीना दस दिन बाद हम मिल रहे होंगे। मतलब कुल चालीस दिन बाद। समय कैसे पंख लगा कर निकल जाता है पता ही नहीं चलता। हम पिछले साल आगरा में मिले थे, लगता है कल की बात है। बात पिछले साल की ही नहीं, दस साल पहले जब हम दिल्ली में पहली बार मिले थे, मेरे जेहन में वो मुलाकात भी ऐसे रची बसी है, मानो वो भी कल ही ही बात हो।
दिल्ली में इस बार दिवाली पर पटाखों का शोर कम गूंजा। अच्छा लगा। कानूनी सख्ती और जागरूकता से इतना तो फायदा हुआ ही कि दिवाली की अगली सुबह वैसी भोथरी नहीं है, जैसी आज से एक हफ्ता पहले की सुबहें थीं। मतलब चालीस दिनों बाद अगर आपको दिल्ली में आसमान थोड़ा धुंधला दिखे तो यकीनन वो सर्दी की ओस की धुंधलाहट होगी। इतने कठिन शब्द इसलिए परोस रहा हूं ताकि आप समझ जाएं कि मौसम सर्द रहेगा। दिल में मिलन की गर्मी रहेगी। एकदम परफेक्ट कांबिनेशन होगा।
आप में से बहुत से लोगों ने यहीं इसी वॉल पर मुझे बता दिया है कि उनका टिकट हो गया है। वो समय पर दिल्ली पहुंच रहे हैं। आप में कुछ लोग जो थोड़ा लेट-लतीफ हैं, उनसे मेरी गुजारिश है कि अब देर न करें, फटाक से टिकट ले लें। तारीख और दिल्ली दोनों दूर नहीं हैं।
इस बार ये हमारा दसवां मिलन समारोह होगा। आपको पता है कि मैं अलग से कोई नेह निमंत्रण नहीं छपवाता। बस यहीं इसी वॉल पर नेह निमंत्रण इसी रूप में कुछ-कुछ दिनों के अंतराल पर आपके सामने पहुंचता रहेगा। इसी में आपका संजू कभी बुआ का भतीजा बन कर आपसे कुछ इस अंदाज़ में मनुहार करेगा कि आप इस समालोह में जलुल-जलुल आइगा, कभी वो संजय सिन्हा के रूप में घर के सबसे बुजुर्ग के रोल में आपके पास पीली हल्दी छिड़क कर नेह निमंत्रण भेजेंगे कि आप अपने इस समारोह में अवश्य आइएगा।
मूल तत्व है मेरा आपसे अनुरोध करना और आपका उस अनुरोध का मान रखना। यही है परिवार। यही हैं रिश्ते। किसी के मन में कुछ भेद बैठा रह गया हो तो उसे संजय सिन्हा को नादान समझ कर क्षमा कीजिएगा और इतनी मेहनत और लगन से बने इस परिवार की कड़ियों को जोड़ने में आप एक हाथ बनिएगा। रसोई में जहां चार बर्तन होते हैं, खट-पट की आवाजें आ ही जाती हैं। पर वही खट-पट रसोई की शान भी होती है।
किसी भी परिवार की एका देखनी हो तो उनकी रसोई में ज़रूर झांकना चाहिए। जिनकी रसोई एक होती है, वही परिवार एक होता है। मैं कई घरों को जानता हूं जहां बाहर सबकुछ अच्छा-अच्छा है, लेकिन रसोई के कई हिस्से हैं। जहां रसोई बंटी, दिल बंट गए। इसलिए चाहे जितनी खट-पट हो, रसोई एक रखिएगा। रसोई दिल के तार जोड़ती है।
मैं जानता हूं कि मुझे ठीक से नेह निमंत्रण लिखना भी नहीं आता, पर क्या करूं? जो हूं, जैसा हूं, आपका हूं। आपने मुझे इसी रुप में स्वीकार किया है।
कई परिजनों ने पूछा है कि कार्यक्रम दिल्ली में कहां है? उनकी जिज्ञासा जायज है। दिल्ली कोई जबलपुर तो नहीं कि पूरा शहर आधे घंटे की सीमा में हो। यहां तो संजय सिन्हा जितनी देर में दिल्ली से जबलपुर पहुंच जाते हैं, उतनी देर में लोग एक इलाके से दूसरे इलाके तक नहीं पहुंच पाते हैं।
आपकी जिज्ञासा मिटाते हुए बता रहा हूं कि कार्यक्रम स्थल धौला कुंआ के पास 'बरार स्क्वायर' पर है। बरार स्क्वायर एक रेलवे स्टेशन का नाम है। बहुत छोटू-सा रेलवे स्टेशन। वैसे वो जगह दिल्ली में हर जगह से पास है। मेट्रो स्टेशन से जुड़ा हुआ इलाका है। सुबह आपको वहां मोर नृत्य करते दिख जाएंगे। शाम आपको खुशगवार दिखेगी।
हम पूरा दिन मस्ती करेंगे। दिल खोल कर मिलेंगे। खूब खाएंगे, पिएंगे मौज करेंगे।
बस तैयारी कर लीजिए। बाहर से आने वालों से अनुरोध है कि 23 की शाम से ही खुमारी में डूबने और उतराने को तैयार रहिएगा। 24 की शाम को जब आप दिल्ली से अपने शहर लौटें तो एक नहीं कई रिश्तों को सहेज कर अपने साथ ले जाइएगा।
रिश्तों का ये महामिलन एक निस्वार्थ मिलन समारोह है। यहां सिर्फ दिल की बातें होती हैं, दिल की बातें ही होंगी। इस समारोह में जो भी किसी और मंशा से आया, वो अधिक समय रह नहीं पाया। कभी उसने खुद अपनी कलई खोल दी, कभी वक्त ने उससे उसकी कलई खुलवा दी।
पीतल चाहे जितना पीला हो, समय उसे काला कर ही देता है। संसार में सबसे कीमती धातु सोना लगातार बना हुआ है क्योंकि पाताल गड़ा रह कर भी वो अपनी चमक नहीं खोता। हमारे आपके रिश्ते पीतल नहीं सोना हैं। चमक बरकरार रखिएगा।
मिलते हैं, चालीस दिनों बाद। अपने आने की सूचना देते रहिएगा। जिनके पास मेरा फोन नंबर है, वो फोन पर दे दें। जिनके पास नहीं है, वो किसी से पूछ लें। और यहां वॉल पर आपके आने की सूचना भी दर्ज की जाएगी।
आइए। स्वागत है आपका।
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