Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन यात्रा

 

ब्रह्मा जी को सृष्टि रचने की जवाबदेही मिली तो उन्होने मानस पुत्रों को जन्म देना शुरु किया।  जैसे आज परखनली संतान संभव है उसी तरह तब मानस संतान भी संभव था। परंतु संतानों ने हरी भजन को छोड़ माया जाल में फंसने से मना कर दिया। जब नारद जी भी अपने पूर्वर्ती भाइयों की तरह ही पिता की आज्ञा का अवेहलना किया तो पिता को क्रोध आ गया फलस्वरूप उन्होने श्राप दे दिया, पुत्र ने भी निर्दोष होकर भी श्रापित होने से पिता जी को भी श्राप दे डाला पर माया मोह ममता के चक्कर में नहीं पड़े। जो फंसे सो फंसते चले गए और हर बात पे बात बात पे दुःखी होना रोना धोना शुरु कर दिए। जीवन हर पल में आनंदित रहने के लिए मिला है इसे यूं ही नहीं गंवाना चाहिए।
Sanjay Sinha उवाच
पृथ्वी प्लेटफार्म
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रोज लोगों को इस प्लेटफार्म से जाते हुए देखते हैं। सोचते हैं कि अभी कौन-सा जाना है।
अभी कहां? 
दुबारा जन्म होगा। ऊपर स्वर्ग-नरक होगा। 
कहानियां, धारणा, विचार। 
सब है। 
कुछ नहीं है। 
अमीरी-ग़रीबी, सुख-दुख, हर्ष-शोक, सफलता-असफलता कुछ नहीं। हम और आप बस यूं ही गुजर कर चले जाते हैं। 
मेरा। 
तेरा। 
उसका। 
किसका?
संजय सिन्हा सुबह-सुबह प्रवचन दे रहे हैं। जगाने के लिए। 
इसके बाद भी कोई जीवन है तो उसका कोई लाभ नहीं है। ये इतना ही है तो इसका कोई अर्थ नहीं। 
प्रयोजन? 
अर्थ? 
हम खुश रहें। जितने दिन रहें। 
संसार में वो पहला इंसान कौन होगा, जिसने जमीन पर एक लकीर खींची होगी, कहा होगा ये टुकड़ा मेरा। 
कैसे? 
कोई मालिक हो ही कैसे सकता है? किसी पहले ने कहा होगा कि ये मेरा। 
दूसरे ने मान लिया। क्यों?
‘मेरा’ ही माया है। भ्रम। 
कौन है सदा के लिए? कितना छोटा है जीवन। 
दीदी एक कुत्ता पाले बैठी थी। 
दस-बारह साल वो दीदी के साथ रहा। मर गया तो दीदी रोने लगी। मैंने उसे समझाया था, कुत्ता इतने ही साल ही जीता है। 
“दुख तो होगा न?”
“खुशी मनाओ। वो दस बारह साल खुशी दे गया।” 
दीदी फिर कुत्ता ले आई। वो भी मर गया। दीदी फिर दुखी हुई। 
मैंने दीदी से कहा, तुम खुश होने के लिए कुत्ता नहीं पालती हो। 
दुखी होने के लिए पालती हो।
जीवन के बारह साल उसके साथ अच्छे गुजरे। इसका जश्न नहीं? 
जीवन यात्रा है। जश्नदार यात्रा। मिलने का जश्न मनाइए। बिछड़ने का गम नहीं।
सच आप जानते हैं। संजय सिन्हा भी जानते हैं। 
आदमी अकेला आता है, अकेला जाता है। वो अकेला ही है। यात्रा में मुसाफिर मिलते हैं। अपनी यात्रा सुखद बनाइए। खुश रहते हुए गुजर जाइए। 
बाबा लोग रोज सुबह-सुबह प्रवनच देते हैं। संजय सिन्हा कहानी सुनाते थे। आज प्रवचन। 
मुझसे तमाम परिजन प्रश्न पूछते हैं। ये समस्या है, क्या करें? 
मैं कहानियों से समस्या का हल बताता हूं। सोचता हूं कि संदेश कई लोगों तक पहुंच जाए। ये सच पहुंच जाए कि जीवन सच में कुछ नहीं। 
कुत्ता बारह-तेरह। आदमी सत्तर-पचहत्तर। कछुआ ढाई-तीन सौ साल। बहुत मत सोचिए। कुछ हासिल नहीं होगा। किसी को हासिल नहीं हुआ।
न ज्ञानी को, न भक्त को। 
न तर्क से। न अंधविश्वास से। 
जितने दिन हैं लोगों के साथ रहिए। दीजिए। संग्रह में मत फंसिए। 
कोई टुकड़ा किसी का न हुआ है, न होगा। 
जीवन ही एक टुकड़ा है। बहुत बड़े किसी अज्ञात जीवन का। 
स्टेशन किसी का नहीं। ये सिर्फ एक प्लेटफार्म  है। हम सब इंतज़ार कर रहे हैं अगली ट्रेन का। 
नोट-  किसी यात्रा में कोई दुबारा कहां मिलता है? कोई नहीं मिलता। कभी नहीं मिलता। 

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