सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
हमारा जीवन भोगमय नहीं योगमय होना चाहिए। सफलता अकेले नहीं आती वह अपने साथ अभिमान को लेकर भी आती है और यही अभिमान हमारे दुखों का कारण बन जाता है। ऐसे ही असफलता भी अकेले नहीं आती, वह भी अपने साथ निराशा को लेकर आती है और निराशा प्रगति पथ में एक बड़ी बाधा उत्पन्न कर देती है।
हम अपने जीवन को योगी बनाकर जिएं अथवा भोगी बनाकर ये व्यक्ति के स्वयं के ऊपर निर्भर है। दु:ख, कटुवचन और अपमान सहने की क्षमता का विकास तथा सुख, प्रशंसा और सम्मान पचाने की सामर्थ्य ही गृहस्थ धर्म का योग भी है।
हर स्थिति का मुस्कराकर सामना करने की क्षमता, किसी भी स्थिति को अच्छी या बुरी ना कहकर समभाव में रहते हुए अपने कर्तव्य पथ पर निरंतर आगे बढ़ने का कौशल, यही जीवन का योग है। योगमय जीवन ही योगेश्वर तक पहुंचाता है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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