जीवन में प्रसन्नता से बढ़ कर कुछ भी नहीं है। बहुत कुछ पास होकर भी लोग प्रसन्न नहीं रहते और कुछ लोग बिना हाथी घोड़ा बंगले के भी खुश रहते हैं। प्रसन्नचित व्यक्ति सकारात्मकता से भरा होता है। प्रसन्नचित रहने वाले व्यक्ति को अभाव या समस्याएं भी दुःखी नहीं कर सकती हैं। ज्ञान और अभ्यास से ही सदा प्रसन्न रहना सम्भव हो पाता है। आप स्वस्थ हैं और प्रसन्न हैं तो समझिए कि दुनियां के आप सबसे अमीर व्यक्ति हैं।
Sanjay Sinha उवाच
जीवन का झरना
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जब मैं पहली बार अमेरिका में नाएग्रा फॉल्स देखने जा रहा था तब मुझे बताया गया था कि रात में वो स्वर्ग जैसा दिखता है। किसी ने कहा था सुबह-सुबह की बात ही निराली है। एक भाई ने समझाया था कि संजय जी, नाएग्रा फॉल्स को अगर आपने गुब्बारे पर चढ़ कर ऊपर से नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। और एक सलाहकार ने सलाह दी थी कि जहाज से पानी के करीब जाकर देखने का मजा ही कुछ और है। और दो सलाह मिले थे, जो तब संभव नहीं था, लेकिन मैंने समय निकाल कर उस सलाह का पालन भी किया।
उनमें एक सलाह थी कि अमेरिका साइड से नाएग्रा फॉल्स कुछ नहीं है। असल में वो कनाडा साइड से कुछ अलग दिखता है और तब की तो बात ही निराली है, जब ठंड में झरना का पानी जम जाता है। हवा में लटकी हुई बर्फ की आंधी जो थम गई हो।
अपनी अगली यात्रा में मैंने कनाडा साइड से भी देखा और कड़ाके की ठंड में जब सब बर्फ था, तब भी। वो दिन तो ऐसा था, जिस दिन सिर्फ हम दो लोग ही नाएग्रा फॉल्स के पास थे।
संजय सिन्हा ने आपको इतना नाएग्रा की कहानी क्यों सुनाई?
मुझे बहुत बाद में समझ में आया कि मैंने अलग-अलग एंगल से उस झऱने को देखने में बहुत समय और बहुत पैसा गंवाया। असल में मुझे सब देख कर ये समझ में आ गया था कि मैंने नाएग्रा फॉल्स देखा, हर एंगल से देखा, सब एक जैसा ही था। लेकिन मेरे मन में ये बात थी कि कोई मुझसे ये न पूछ बैठे कि उधर से देखा कि नहीं, इधर से देखा कि नहीं? हवा में लटक कर देख पाए या नहीं?
वो मेरे ऊपर एक दवाब था।
आदमी बहुत बार जीवन में अनावश्यक दवाब में रहता है। बिना कारण।
बात ये है कि मैं चाहता था कि नाएग्रा फॉल्स का कोई एंगल मुझसे न छूटे। जब सब एंगल से मैंने उसे देख लिया तो पाया कि असल में उसे किधर से भी देखिए, महत्वपूर्ण ये नहीं, महत्वपूर्ण ये है कि आप उसे देख पाए।
देखना असल में उस पल को जीना होता है। आप कैमरे में लाख तस्वीर उतार लें, दुनिया को दिखला दें, लेकिन मूल खुशी है उस पल को जीना। ठीक वैसे ही जैसे कोई प्रेम को जीता है। जैसे कोई ज़िंदगी को जीता है।
प्रेम में सबसे कीमती क्या है? वो पल, जिसे आप जी रहे होते हैं। उसके बाद क्या? मेरा मानना है कि प्रेम में न कुछ अच्छा होता है, न कुछ बुरा। जो होता है वो बस वो पल होता है, जिसे हम जी लेते हैं। सिर्फ उतना ही।
जीवन भी उतना ही है।
मैं कुछ घंटे नाएग्रा फॉल्स के पास रहा होऊंगा। बस उतने ही घंटे मेरी यादों में नाएग्रा के हैं। मैंने किधर से देखा था, कैसे देखा था उसकी मेरे लिए कोई अहमियत नहीं। मेरे मन में ये था कि कोई एंगल जो छूट गया और फिर मुझसे किसी ने कहा कि आपने तो कुछ देखा ही नहीं, तो मेरा नाइग्रा जाना ही बेकार हो जाएगा। पर मेरी वो समझ, सोच समय की बर्बादी थी।
हम धरती पर आए हैं। जीने के लिए। खुशी से जीने के लिए। बस। इतनी-सी बात है। फर्क नहीं पड़ता कि किसे क्या मिला, किसके पास क्या है। फर्क इस बात का होगा कि सब होकर भी खुश हैं या नहीं? संतुष्ट हैं या नहीं? कोई अफसोस तो नहीं?
नाएग्रा से लौटते हुए मेरे मन में अथाह खुशी थी कि कुछ मुझसे नहीं छूटा। पर आज कोई मुझसे पूछे तो मैं इतना ही कहूंगा कि अगर मैंने नाएग्रा का वो झरना किसी भी एंगल से सिर्फ देख भर लिया होता तो भी मुझे उतनी ही खुशी होती, जितनी मुझे चौतरफा एंगल से देख कर हुई।
हम पर दुनिया का दवाब इतना होता है कि हम सब उसकी मर्जी से करने लगते हैं। जबकि सत्य ये है कि आपकी खुशी सिर्फ आपके हाथ है। मैंने अलग-अलग एंगल से देखने में बाकी सब छोड़ दिया, ताकि कह सकूं कि ऐसे किया, वैसे किया।
आप मेरी वाली गलती मत कीजिएगा। जैसे जीना हो, वैसे जिएं। जैसे रहना हो, वैसे रहें। संजय सिन्हा की तरह लोगों के चक्कर में अपना चैन मत खोइएगा। जीवन का झरना देखने आए हैं, जैसे अच्छा लगे, वैसे देखिए। मूल तत्व है खुश रहना।
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