सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
जो हम प्रतिदिन सुनते हैं, देखते हैं, वही हम होने भी लग जाते हैं। बुरा करना तो गलत है ही पर किसी की बुराई सुनना भी गलत ही है। जो लोग आपके सामने दूसरों की बुराई करते हैं, सच समझना निश्चित ही वो लोग दूसरों से आपकी बुराई भी करते होंगे।
बुरा करना घातक है और बुरा सुनना पातक है इसलिए सदैव दोनों से बचने का प्रयास करना चाहिए। किसी की बुराई सुनने से हमारे स्वयं के विचार भी दूषित हो जाते हैं। विचारों का प्रदूषण फैलने का प्रमुख कारण हमारी वो आदतें हैं जिन्हें किसी की बुराई सुनने में रस आने लगता है।
बुराई को सुनना, बुराई को चुनना जैसा ही है क्योंकि जब हम बुराई सुनना पसंद करते हैं तो बुराई का प्रवेश हमारे जीवन में स्वतः होने लगता है। दूसरों की बुराई सुनने की अपेक्षा स्वयं के जीवन से बुराई मिटाने के लिए सदैव प्रयासरत रहें।
सुरपति दास
इस्कॉन
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