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कागज पर मेरा विकास

 
पहले हैप्पी बर्थडे का चलन ही नहीं था। जन्मदिन की तारीख स्कूल में पढ़ने वाले का मैट्रिक का फार्म भरने के समय ही तय होता था। स्कूल नहीं जाने वाले का तो कोई जन्मदिन तय भी नहीं हो पाता था। अब तो पैरेंट्स हर महीने एनिवर्सरी और जन्मदिन मनाते हैं। इससे पता चलता है कि हैप्पी इंडेक्स में देश ने कितना विकास किया है। वैसे भी विकास के लिए आंकड़े देखने की अब जरुरत ही नहीं, अब तो विकसित देश के प्रतिनिधि भी आकर देश के विकास की जय जय करते हैं। वैसे भी जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत दिखें तिन तैसी।
Sanjay Sinha उवाच
कागज पर मेरा विकास
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मैं भारी दुविधा में हूं। मेरी दुविधा अभी मेरी उम्र को लेकर है। मुझे ठीक से नहीं पता कि मैं कितना बड़ा हो गया हूं। 
एक उम्र तो वो होती है, जो मां बताती है। मां को साल, दिन ठीक से याद नहीं रहा। वो यही याद करती रही कि उस दिन बहुत बारिश हो रही थी। सुबह का समय था। बाद में वो तारीख बताई गई 27 अगस्त। 
मैं अपनी मां की तीसरी संतान था। मतलब मुझसे पहले दो बहनें थीं। ये तय है कि हम तीनों का जन्म एक साथ नहीं हुआ था। मेरी दोनों बहनें मुझसे पहले स्कूल जाने लगी थीं। बस मुझे ही स्कूल जाने के नाम पर पसीने आने लगते थे। बचपन से मन में प्रश्न था कि क्यों जाना स्कूल? स्कूल जाने से क्या होगा? 
मां कहती थी कि पढ़ाई करोगे तो अच्छे इंसान बनोगे?
मां के संजू बेटे का तर्क होता था कि पढ़ाई करनी है न, स्कूल जाने की शर्त क्यों? 
और मां के दुलार में तीन कक्षा तक स्कूल नहीं गया। बाद में दीदी के साथ स्कूल जाने का लालच देकर जब चौथी कक्षा में मुझे भेजा गया तो भरत मास्टर साहब ने समझदारी दिखलाते हुए स्कूल के रजिस्टर में मेरी जन्मतिथि और दीदी की जन्मतिथि एक ही लिख दी। एक दिन एक साल। राम जाने समय भी लिखा था या नहीं, पर हम दोनों भाई-बहन का जन्म सरकारी खाते में एक दिन दर्ज हो गया। 
पिताजी को इस बात से फर्क नहीं पड़ रहा था कि बेटे की तारीख क्या लिखी गई है, मां को ये पता ही नहीं था। मैं खुश था कि मैं बड़ा हो गया हूं और दीदी खुश थी संजू स्कूल जाएगा।
तो मैं समय से पहले बड़ा हो गया। सरकारी रिकॉर्ड में। मैं जल्दी बालिग भी होने जा रहा था। 
यहां तक कहानी ठीक है। मां के तीन बच्चों में दो जुड़वा हो गए, भरत मास्टर के सरकारी प्रयास से। 
सरकार बहुत काम करती है, बिना प्रयास के। कागज़ों में दर्ज कर दो, वो गया काम। भरत मास्टर अगर शिक्षक नहीं होते, सरकारी अफसर होते तो वो कागजों में देश की विकास गाथा लिख देते। उन्हें पता था कि जो लिख गया, वही सच है। उन्हें सरकार की ताकत के बारे में पता था, कागज पर लिख देने की ताकत के बारे में पता था।
इस तरह मेरे दो जन्मदिन हो गए। दो साल हो गए। सब ठीक था। 
मैं दिल्ली में बस गया, दीदी बैंगलुरू में। 
अभी दो दिन पहले दीदी 'नागरिक जिम्मेदारी' को निभाने के लिए बैंगलोर में वोट डालने गई तो हैरान रह गई ये देख कर (जान कर) कि सरकारी खाते में उसकी उम्र 68 साल लिखी हुई है। 
उसने मुझे फोन किया, “भाई बधाई हो। इसका मतलब कि तुम भी 68 के हो गए।” 
“कैसे?”
“हम दोनों की उम्र एक लिखी है न कागज़ में?”
“हां। भरत मास्टर ने लिखी थी।”
“भाई, भरत मास्टर पीछे रह गए। यहां सरकारी बाबू ने नई उम्र लिख दी है। 58 को 68 कर दिया है। साफ-साफ लिखा है उम्र 68 वर्ष।”
“वाह! अब लग रहा है कि सही मायने में विकास हुआ है। बिना रिटायर हुए तुम्हारे पीछे मैं भी रिटायर हो गया। अब हम दोनों को फिक्स्ड डिपाजिट पर वरिष्ठ नागरिक को मिलने वाला ब्याज मिलेगा। 
एक साथ कई फायदे।
दीदी खुश है। लेकिन एक चिंता मुझे सता रही है। वैसे तो मां-पिताजी अब दोनों नहीं हैं, लेकिन चिंता ये है कि 68 साल पहले मां-पिताजी की शादी भी नहीं हुई थी।
चिंता करने से क्या फायदा? मेरी दीदी की उम्र वहां सरकारी खाते में 68 लिख दी गई है तो वो 68 की हो गई। भरत मास्टर ने हम दोनों की उम्र की तारीख एक ही लिख दी थी, तो दीदी सही कह रही है, बैंगलुरु के रिकॉर्ड में संजय सिन्हा भी दीदी के बराबर ही माने जाने चाहिए। 
अब मैं सच समझ गया हूं। वोट वाले दिन हर शहर में एक बहुत बुजुर्ग महिला या पुरुष 
(जो दो तीन सौ साल के होते हैं) किसी की गोद में, गाड़ी में बैठ कर लोकतंत्र के सजग प्रहरी बन कर जाते हैं, वोट डालने, वो असल में भरत मास्टर और सरकारी बाबू की मेहरबानी से जल्दी-जल्दी बढ़ जाते हैं। एक ही बार में दस-दस साल। 
भरत मास्टर ने चौका लगाया था। चुनाव वाले बाबू ने सीधे दस रन। 
विकास हुआ है। विकास हो रहा है। मुबारक हो विकास। 
नोट- 
1. आज तीसरा दिन है, डॉक्टर Mamta Saini(Chanda Shaw कहीं बैनर्जी न पढ़ लें) की दवाई का। दो दिन और दवा खानी है, फिर अपने फार्म में संजय सिन्हा।
2. इन दिनों टाइप की गलतियां दिखती हैं। कल Pavan Chaturvedi भैया ने टोका भी था। क्या करूं। सेब (एप्पल) का फोन मैं इस्तेमाल करता हूं। कम्प्यूटर पर सही दिखता है, फोन पर विकास हो जाता है। 
4. विकास का जिम्मा बाबू ने उठाया है। विकास होकर रहेगा।
3. नमस्ते।

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