कुछ भावनात्मक पल बेहद जटिल प्रश्न खड़े कर देते हैं। एक के लिए वह नैतिक और और पुण्य का कार्य हो भी सकता है परंतु दूसरों की नजर में वह घोर अनैतिक और पाप भी हो सकता है। ऐसे जटिल परिस्थितियों में सबसे ऊपर आपका अपना नैतिक बल ही आपका सही मार्गदर्शक हो सकता है।
Sanjay Sinha उवाच
कैसी है पहेली
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कहानी मैंने दस साल पहले सुनाई थी। तब मेरे सामने प्रश्न था नैतिक और अनैतिक।
दस साल बाद फिर किसी ने पूछा है, संजय सिन्हा जी नैतिक और अनैतिक क्या है?
सुनी हुई आज की मेरी कहानी को फिर से सुनिए। बहुत से प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे। कुछ प्रश्न खड़े भी हो जाएंगे।
बस एक वादा कीजिएगा कि अपना जवाब दीजिएगा, कहानी से निकले प्रश्न पर।
संजय सिन्हा जानते हैं कि बहुत से सवालों के जवाब आसान नहीं होते। जब मैंने आपको ये कहानी सुनाई थी, तब खबर मनीला से आई थी। वहां के एक अस्पताल में कैंसर से पीड़ित 29 साल के एक युवक ने अस्पताल के बिस्तर पर अपनी प्रेमिका से शादी कर सबको भावुक कर दिया और शादी के सिर्फ दस घंटे बाद ही उसकी मौत हो गई। लीवर कैंसर चौथे स्टेज के इस मरीज को मालूम था कि उसकी ज़िंदगी के अब बस कुछ ही घंटे बचे हैं, ऐसे में अपनी प्रेमिका के साथ विवाह कर उसने अपनी अंतिम इच्छा पूरी की। विवाह के बाद उसने अपनी प्रेमिका, भाई और मां समेत अस्पताल के सभी स्टाफ को धन्यवाद कहा और दुनिया को अलविदा कह गया। अपनी पत्नी के साथ वो महज कुछ घंटे ही बिता पाया, और छोड़ गया ढेर सारी यादें।
इस खबर को पढ़ने के बाद मैं संजय सिन्हा बहुत देर तक रुका रहा था। दिमाग शून्य में समाहित हो गया था।
प्रश्न - ये कैसा प्यार था? क्या ये प्यार था?
मैंने ऐसी कई कहानियां सुनी हैं, जब दूसरे साथी को पता चलता है कि वो लाइलाज बीमारी का शिकार है तो वो खुद को ऐसे रिश्तों से दूर कर लेता है, ताकि पार्टनर की ज़िंदगी बर्बाद न हो जाए।
अगली कहानी।
एक नौजवान, जो अपने भैया भाभी के घर रह कर कॉलेज की पढ़ाई कर रहा होता है, एक दिन उसकी तबियत बहुत खराब हो जाती है। पता चलता है कैंसर है। आखिरी स्टेज। लड़के की ज़िंदगी शुरू होने से पहले खत्म होने को आ गई है। लड़का बिस्तर पर गिर पड़ता है। रात-दिन मौत को महसूस करता है। भैया और भाभी दोनों उसकी बहुत देखभाल करते हैं। दोनों उससे बहुत प्यार करते हैं। भाभी सबसे अच्छी दोस्त हैं और उसकी परवाह और सेवा भी करती हैं। देवर भाभी में उम्र का फासला बहुत नहीं।
एक दिन देवर ने भाभी से कहा है कि उसे इस बात दुख है कि किसी महिला के साथ उसका अंतरंग रिश्ता नहीं बना। किसी के महिला के साथ वो रिश्ता नहीं बना पाया। और अब कभी बनेगा भी नहीं। वो उदास था।
देवर बीमार था, बिस्तर पर था। एक दोपहर, जब बड़ा भाई घर पर नहीं था, देवर ने अचानक भाभी के सामने एक बार हमबिस्तर होने का प्रस्ताव रख दिया।
बहुत विकट इच्छा थी। अजीब प्रस्ताव था। भाभी के सामने धर्म संकट था।
क्या करे? ऐसी इच्छा थी, जिसे पूरा कर पाना संभव नहीं था।
जब कहानी में देवर का ये प्रस्ताव भाभी के सामने आया था, तब संजय सिन्हा भी सोच में पड़ गए थे। अब क्या होगा?
भाभी चिंता में है। दुविधा में है। मरते हुए अपने जिगर के टुकड़े जैसे दोस्त और पति के छोटे भाई की अंतिम इच्छा का क्या किया जाए?
वो चुप थी। देवर ने भी दुबारा कुछ नहीं कहा। दिन गुजरते गए। युवक धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रहा था।
एक दिन भाभी ने खुद को देवर को को सौंप दिया। अगले दिन देवर की मौत हो गई।
क्या ये अनैतिक था?
था तो क्यों?
नहीं तो क्यों नहीं?
संजय सिन्हा के मन में उठा प्रश्न- मरते हुए युवक के मन में ऐसी चाहत हुई ही क्यों?
मेरे सवाल का जवाब देते हुए आप ख्याल रखिएगा कि उस महिला ने अपने पति से उसके छोटे भाई की अंतिम इच्छा की पूर्ति वाली बात कभी साझा नहीं की।
वो सामाजिक अपराध बोध से तो बची हुई है। क्या वो नैतिक अपराध बोध से बची है?
आप क्या कहेंगे?
सोच कर, समझ कर, चिंतन करके जवाब दीजिएगा। रिश्तों और भावनाओं से जुड़े कई सवालों के जवाब जटिल होते हैं।
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