प्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
निसंदेह कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माता होता है। वर्तमान के अच्छे-बुरे कर्म ही भविष्य में हमारे भाग्य का निर्धारण करने वाले हैं। सब वस्तुओं की तुलना कर लेना मगर अपने भाग्य की कभी भी किसी से तुलना मत करना।
प्रायः लोगों द्वारा अपने भाग्य की तुलना दूसरों से कर व्यर्थ का तनाव मोल लिया जाता है व उस श्रीकृष्ण को ही सुझाव दिया जाता है कि उसे हमारे साथ ऐसा नहीं, ऐसा करना चाहिए था। श्रीकृष्ण से शिकायत मत किया करो। हम अभी इतने समझदार नहीं हुए कि उसके इरादे समझ सकें।
यदि उस ईश्वर ने आपकी झोली खाली की है तो चिंता मत करना क्योंकि शायद वह पहले से कुछ बेहतर उसमें डालना चाहता है। आपके पास समय हो तो उसे दूसरों के भाग्य को सराहने में ना लगाकर स्वयं के भाग्य को सुधारने में लगाओ। परमात्मा भाग्य का चित्र अवश्य बनाता है मगर उसमें कर्म रुपी रंग तो हमारे द्वारा स्वयं ही भरा जाता है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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