सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
कर्म ही हमारे प्रारब्ध का निर्माता होता है। हमारे द्वारा संपन्न प्रत्येक शुभाशुभ कर्म की हमारे प्रारब्ध निर्माण में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जीवन को पूरी तरह प्रारब्ध के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। हम आज जो हैं, जैसे हैं, उसमें प्रारब्ध के साथ-साथ हमारे द्वारा कृत कर्म भी बराबर के जिम्मेदार होते हैं।
पुरुषार्थ किए बिना फल की इच्छा करना और उस इच्छा का पूर्ण ना होना प्रारब्ध दोष नहीं अपितु पुरुषार्थ के अनुपात में फल की प्राप्ति ना होना अवश्य प्रारब्ध दोष है। कभी - कभी जिस अनुपात में पुरुषार्थ किया जाता है उस अनुपात में फल की प्राप्ति नहीं हो पाती यही हमारा प्रारब्ध है।
भगवान श्रीकृष्ण भी अर्जुन को बार-बार यही समझा रहे हैं कि हे अर्जुन सतत शुभ और श्रेष्ठ कर्म करते रहो ताकि तुम्हारा कर्म ही योग बन जाए। जहाँ कर्म ही योग बन जाता है वहाँ योगेश्वर को भी आते देर नहीं लगती। कर्मशील लोग अपने प्रारब्ध के निर्माता स्वयं होते हैं। धैर्य पूर्वक श्रेष्ठ कर्म करते रहें, श्रेष्ठ प्रारब्ध का निर्माण अवश्य होगा।
सुरपति दास
इस्कॉन
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