बेचैन आत्मा भूरे भैरव की तरह इसी तरह भटकता रह जाता है। शांत चित्त आत्मा इहलोक और परलोक दोनों को पा लेता है।
Sanjay Sinha उवाच
किस्मत आपके सामने
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एक काला है। एक भूरा। दोनों रोज़ मुझे मंदिर के बाहर मिलते हैं। एक मोटा है, दूसरा पतला। दोनों में मौन का रिश्ता है। मैंने दोनों को कभी आपस में न झगड़ते देखा है, न बात करते। पिछले कई दिनों से रोज़ नोट कर रहा हूं। काला वाला मंदिर के बाहर बैठा रहता है। भक्त आते हैं, उसे दूध, ब्रेड दे जाते हैं। भूरा दूध-ब्रेड पाने से अक्सर चूक जाता है।
आजकल है कुत्तों की सेवा का।
कुंडली विज्ञान में अलग-अलग जीवों की सेवा का अलग-अलग फल बताया गया है। पढ़े-लिखे-अनपढ़, अमीर-गरीब सबकी आस्था है ऐसी सेवा पर। इंगलिश में इसे रेमेडी कहते हैं। कुंडली दोष से बचने के उपाय।
अमीर चाहता है कि उसकी अमीरी बची रहे। गरीब चाहता है कि उसकी गरीबी दूर हो जाए। दोनों का मकसद एक है, दोनों के लिए रेमेडी भी एक। कुत्ते को दूध-ब्रेड खिलाएंगे तो केतु महाराज आशीर्वाद देंगे।
आपको तो पता ही है कि कुंडली में दो ग्रह राहु और केतु ऐसे हैं जो अक्सर बिगड़े रहते हैं। दोनों को सेट करना पड़ता है। मैं अपने संपादक काल में भारत के एक से बढ़ कर एक महान ज्योतिषियों से मिला हूं। मैंने उनका राहु-केतु ठीक किया है। एक पंडित जी एक बार मुझसे कहा था कि संजय सिन्हा जी, कुंडली में राहु-केतु का दोष हो तो जीवन तनाव और मुसीबतों से भरा रहता है। ये दोनों ग्रह एक ही झटके में जातक को अमीर और गरीब बना देते हैं।
ज्योतिष महोदय जब आए थे तब दुर्बल काया के थे। वो मुझसे टीवी पर एक शो की अनुमति चाहते थे। मैंने उनसे ये पूछा था कि आपके दोनों ग्रह कुंडली में कहां विराजमान हैं? उन्होंने कहा था कि अभी तो सारी कुंडली आपके भरोसे है संजय जी।
कौन अपनी तारीफ सुन कर खुश नहीं होता है? राहु-केतु तो दूध-ब्रेड से प्रसन्न होते हैं। संजय सिन्हा सिर्फ तारीफ से। संजय सिन्हा तत्काल प्रसन्न हुए और ज्योतिष को आशीर्वाद मिल गया, तथास्तु।
ज्योतिष को शो मिला और साल भर में वो छा गए, मोटा गए। उन्होंने टीवी पर लोगों को बताया कि कुत्ते को दूध पिलाएं, ब्रेड खिलाएं। पक्षियों को दाना डालें। पक्षी प्रसन्न तो राहु की बल्ले-बल्ले। कुत्ता प्रसन्न तो केतु मेहरबान।
पिछले कुछ वर्षों में सड़क छाप केतु दूत समझ गए हैं कि लोग उन्हें दूध पिलाएंगे ही पिलाएंगे, क्योंकि उनका केतु से डाइरेक्ट कनेक्शन है।
कहानी आगे - मंदिर के बाहर वो काला केतु दूत हमेशा आराम से बैठा होता है। उसकी दुकान ठीक चल रही है। वो किसी के आने पर खड़ा तक नहीं होता। उसे अपने केतु महाराज पर अथाह भरोसा है। लोग आते हैं, उसकी सेवा कर जाते हैं। क्योंकि उसकी सेवा ठीक हो रही है तो वो आज संजय सिन्हा की चिंता का विषय नहीं।
संजय सिन्हा चिंतित हैं भूरे को लेकर। पता नहीं क्यों भूरा हमेशा दुविधा में रहता है। जो भी गाड़ी से आता है, जाता है उसके पीछे भागता है। कुछ लोग उसकी इस हरकत से डर भी जाते हैं। ऐसे में वो जो दूध का पैकेट उसके लिए लेकर आए होते हैं, वो भी काले के आगे रख जाते हैं। बेचारा भूरा!
मैंने देखा है कई बार लोग दो पैकेट दूध लाते हैं, एक काले के लिए, दूसरा भूरे के लिए। लेकिन ऐन वक्त पर भूरा किसी और के पीछे भागता है। ऐसे में भक्त मजबूरी में दोनों पैकेट काले के आगे रख जाते हैं।
कल मैं मंदिर के बाहर दोनों की हरकतों को नोट कर रहा था। काला मस्त बैठा था। भूरा ग्राहक की तलाश में बीच रोड पर खड़ा था। भक्त आए, भूरा दूसरी ओर बीच सड़क पर था। भक्त ने दोनों काले के आगे रख दिया, चलता बना। भूरा उधर आया, तो उसका हिस्सा जा चुका था।
मैं सोचता रहा, जो संतोषी होते हैं और अधिक उछल-कूद नहीं मचाते, भगवान पर भरोसा करते हैं उन्हें आसानी से मिलता है। जो अपना खुड़पेची दिमाग दिमाग अधिक लगाते हैं, इधर-उधर मुंह मारते फिरते हैं, चालाकी दिखलाते हैं उनके हिस्से आया माल भी निकल जाता है।
नतीज़ा?
काला भाई केतु महाराज की कृपा से मंदिर के बाहर बैठ कर रोज़ फल का डबल डोज पा रहा है।
तय आपको करना है कि काले का भरोसा और संतोष आजमाना है या भूरे का असंतोष और अविश्वास।
दोनों एक ही योनि में हैं। दोनों हमउम्र के हैं। दोनों एक ही स्थान पर हैं। बस सोच अलग-अलग और दोनों की किस्मत आपके सामने है।
नोट- काला कैमरे में दिख रहा है पर भूरे की क़िस्मत देखिए कि जैसे ही कैमरा उसकी ओर हुआ वो किसी और की ओर लपक पड़ा। यहां भी वो चूका।
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