Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कुसंग के प्रभाव

 

सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
कुसंग के प्रभाव से हमारा भजन उसी तरह नष्ट हो जाता है जिस तरह पाले के प्रभाव से हरी-भरी बेल सूखकर धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है। हम कितना भी भजन कर लें, सत्संग कर लें लेकिन निरंतर कुसंग का सेवन करते रहे तो सुना हुआ, पढ़ा हुआ और जाना हुआ कोई भी सुविचार आचरण में नहीं उतर पायेगा।

जीवन के उत्थान के लिए यदि सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कोई बात है तो वो है हमारा संग। धनवान के संग से धनोपार्जन के विभिन्न साधनों का ज्ञान हो जाता है जो धनवान बना सकता है।

ऐसे ही ज्ञानवान बनने के लिए ज्ञानी जनों का और धर्मवान बनने के लिए धर्मनिष्ठ महापुरुषों का संग आवश्यक हो जाता है। संग के प्रभाव से तो तोता भी राम-राम रटने लग जाता है।

सुरपति दास
इस्कॉन
 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ