मैं रोमांटिक हूं
क्योंकि!
रोमांटिक होना छिछोरा होना नहीं होता...इंसान वही रोमांटिक हो सकता है जिसमें एहसास को समझने की कुव्वत हो...जिसमें जज़्बात हों...आरज़ूएँ हों...भावनाएं हों...जिसमें ज़िंदादिली हो...!
जो प्रेम को जीना जानता हो...जो देना जानता हो...जो बेइंतहा एहसासों से भरा हो...जिसमें आकाश जैसी विशालता हो...जिसमें फूलों की कोमलता ही नहीं उनकी सुगन्ध की कस्तूरी भी हो...जिसका वजूद बहुत नन्ही नन्ही चीज़ों से जुड़ा हो...जो शुक्र करना जानता हो...!जो अलसाई हवा को भी तेज़ और सुवासित करना जानता हो, जो सूखे गुलाबों को भी महक से सराबोर करना जानता हो, जो मुस्कुराहटों में छिपे दर्द पहचान ले, जो फीके रंगों में चमक भर दे..!जो भीड़ में भी आपको ये अहसास कराए कि आप सबसे बेहतर हो..क्योंकि आप उस से जुड़े हो..!
गुरूर करवाए आपको खुद पर क्योंकि आप उसकी पसंद हो ,जिसे हर कोई पसंद नहीं आता..!
ऐसा Prachi Srivastava जी ने कहा है।
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