बड़े पुण्यात्मा होते हैं वो जो अपने जाने का दिन बता देते हैं। आवागमन दुनियाँ की रीत है। माता पिता का बिछोह अंतहीन पीड़ा दे जाता है। पुण्यमृति को सादर नमन
Sanjay Sinha उवाच
कहने को कुछ नहीं
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आज मेरे पास नया लिखने को कुछ नहीं है। रात में एक बजे सो गया था। सुबह साढ़े तीन बजे से नींद खुली हुई है। ढाई घंटे बहुत होते हैं सो लेने के लिए। फिर आदमी को जाग जाना होता है।
आज मैं आपसे कुछ नया नहीं कहने जा रहा। दुहरा रहा हूं। आज के दिन इसके अलावा मुझे कुछ याद ही नहीं आता।
एक बच्चे की डायरी
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तारीख़- 29 मार्च, 1980
समय- सुबह 5 बजे
आज 29 मार्च है। मां ने कल रात ही मुझे बता दिया है कि वो आज इस संसार से चली जाएगी। मैंने मां से पूछा था कि मां आपके चले जाने का मतलब क्या है? आप फिर लौट तो आएंगी न!
मां ने मुस्कुरा कर कहा था, "हां, फिर लौट आऊंगी तुम्हारे पास।"
मां ने फिर मुंह दूसरी ओर करके अपने आंसू पोछे थे।
मैं छोटा हूं लेकिन अब समझने लगा हूं कि हर आदमी जो इस संसार में आया है, उसे एक दिन चले जाना होता है। मां भी चली जाएगी।
पर मां को कल ही कैसे पता चला कि वो आज चली जाएगी। क्या यमराज ने आकर मां को पहले ही बता दिया है?
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सुबह- 5.30 बजे
मां के कमरे में झांक कर देख आया हूं। मां सो रही है। पर मुझे नींद नहीं आ रही।
संसार का सबसे अभागा बच्चा वो होता है, जिसकी मां उसे छोड़ कर चली जाती है।
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रात- 8.30 बजे
अभी कुछ देर पहले ही हम सभी लोग मां को गंगा जी के किनारे जला कर आए हैं। पूरा शहर मां के पीछे-पीछे गंगा जी के घाट पर गया था।
मां को जिस दिन डॉक्टर ने कैंसर बताया था, उसी दिन मां मर गई थी।
नहीं, मां मरी तो नहीं थी। वो बस बिस्तर पर लेट गई थी। फिर मां के पेट का ऑपरेशन हुआ था और उस ऑपरेशन के बाद मां कभी बिस्तर से उठी ही नहीं। मुझे बहुत दिनों तक लगता रहा कि मां एक दिन ठीक हो जाएगी। पर मां जानती थी कि वो कभी ठीक नहीं होगी।
मां ने कल मुझे अपने पास बहुत रात तक बिठा रखा था। मां ने कहा था, "सुबह सबसे कहना कि खाना जल्दी खा लें।"
क्या मृत्यु के बाद घर के लोग खाना नहीं खाते?
क्या पता? मैं तो मां से यह सब पूछ भी नहीं सकता था।
मां ने कल मुझसे कहा था कि बाबूजी का ख्याल रखना। सबका ख्याल रखना। शायद मां भूल गई थी कि उसका बेटा बहुत छोटा है। दुनिया भर की मांएं अपने बड़े-बड़े बच्चों को भी छोटा मानती हैं, पर मेरी मां तो कल मुझे तैयार कर ही थी मृत्यु के दंश से उबरने के लिए।
मैं इन बातों को सोचने के लिए बहुत छोटा हूं कि आदमी मरता क्यों है। अगर उसे मरना ही है तो फिर वो जन्म ही क्यों लेता है?
मां की मृत्यु से पहले मैंने किसी की लाश नहीं देखी थी। मां मर गई थी। ऐसा लोग कह रहे थे। मुझे तो आख़िर तक यही लगता रहा कि मां सो गई थी। मां ऐसे ही सोती थी। सोते हुए भी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट रहती थी।
मुझे नहीं पता। कुछ नहीं पता। मुझे नहीं पता कि लोगों ने उसे बिस्तर से उतार कर नीचे क्यों लिटा दिया था। शायद सबको लिटाते होंगे।
आदमी का रिश्ता मिट्टी से होता है, शायद इसीलिए।
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रात- 11 बजे
मां को मरे हुए अभी कुछ ही घंटे गुजरे हैं। ऐसा लग रहा है कि मां की मौत बहुत पहले हो चुकी थी। मुझे याद है कि मैंने अंखियों के झरोखों से फिल्म में कैंसर से लड़ रही नायिका को मरते देखा था। उसी दिन मैंने अपनी डायरी में यह भी लिखा था कि हे भगवान! मेरी मां को मौत दे दो।
मैं इस संसार में सबसे गंदा बच्चा हूं। मैंने अपनी मां की मृत्यु की दुआ मांगी थी।
मुझसे मां की तकलीफ नहीं देखी जाती थी।
फिल्म में नायिका मर गई थी। मां भी मर गई। लेकिन एक दिन आएगा, जब डॉक्टर कैंसर का इलाज़ ढूंढ लेंगे। फिर कोई कैंसर से नहीं मरेगा।
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नोट-
ये सारी पंक्तियां मेरी डायरी के पन्नों से हैं। जस की तस। उसी साल पिताजी ने मुझे एक डायरी दी थी। छूटते साथ के बीच मैंने मां की कई यादों को सहेज़ कर अपने पास रख लिया था। मैं जानता था कि मां चली जाएगी, पर उन यादों में मां मेरे पास हमेशा मौजूद रहेगी।
मां की हथेली के निशान। मां की बंद पड़ी घड़ी। मां का मोतियों वाला पर्स।
आज के ही दिन मेरी मां इस संसार को छोड़ कर चली गई थी।
लेकिन वो मेरे पास वो आती रहीष हज़ारों रिश्तों में समाहित होकर। आप में समाहित हो कर।
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