सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
कोई वस्तु हो, पदार्थ हो, प्राणी हो अथवा मनुष्य हो प्रकृति के परिवर्तन से सबको गुजरना ही पड़ता है। एक न एक दिन सबको जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना ही है। जरा द्वारा समय आने पर सब कुछ अपनी जंजीरों में जकड़ लिया जायेगा।
शास्त्रों ने बताया है कि तृष्णा को नष्ट कर पाना जरा द्वारा भी संभव नहीं। मानव मन की तृष्णा सदैव तरुणी बनी रहती है। नित नवीन इच्छाओं का जन्म होना और एक इच्छा के पूर्ण होने पर मन से असंतुष्ट रहते हुए और अनेक इच्छाओं का जन्म हो जाना ही तृष्णा का स्वरूप है।
सत्संग व ग्रंथों के स्वाध्याय को अपनी जीवन चर्या बनाएं और प्रभु शरणागत बनें क्योंकि कृष्ण का आश्रय ही मानव मन की तृष्णा का सर्वनाश कर सकता है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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