Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मनुष्य का चरित्र ही जीवन सार

 

सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
सद्विचारों और सत्कर्मों की एकरूपता को ही चरित्र कहते हैं। जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखते हैं और उन्हें सत्कर्मों का रूप देते हैं, उन्हीं को चरित्रवान कहा जा सकता है। जब धन चला गया तो कुछ भी नहीं गया, जब स्वास्थ्य चला गया तो कुछ गया, पर जब चरित्र चला गया तो सब कुछ गया। समस्त मानव जीवन का कुछ सार है, तो वह है मनुष्य का चरित्र।

संसार में ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है, जो धन के लिए अपने आप को बेचते नहीं, जिनके रोम-रोम में ईमानदारी भरी हुई है, जिनके भीतर सत्य का दीपक प्रकाशित है, जो अपने सत्य को प्रगट करने में क्रूर राक्षस का सामना करने से भी नहीं डरते हैं, वे ही चरित्रवान आदमी हैं।

अपने हाथ से हुए पुण्य और किसी दूसरे से हुए पाप की चर्चा किसी से नही करनी चाहिए यह भी आपके चरित्र की परीक्षा हैं। समय का कैसा मोड़ है, रात-दिन की दौड़ है, खुश रहने का समय नहीं, बस खुश दिखने की होड़ है। संबंधों को सिर्फ समय की ही नहीं समझ की भी जरूरत होती है। ईश्वर ने दूसरों को क्या दिया है यह देखने में हम लोग इतने व्यस्त रहते हैं, कि ईश्वर ने हमें क्या दिया है, वो देखने का हमें वक्त ही नहीं होता। एक कड़वा सच यह भी है, कि 50 लाख की गाड़ी में घूमने वाले भी 50 रुपए के घड़े में ही हरिद्वार पहुंचते हैं, इसलिए अहंकार तो बिल्कुल नहीं पाले।

सुरपति दास
इस्कॉन 




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