सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
निष्कपट मन से की गई प्रार्थनाएं कभी व्यर्थ नहीं जाया करती हैं। जीवन पथ पर जब परिणाम हमारी आशा के विपरीत हों और हमारे हाथों में कुछ भी न हो तो उन क्षणों में प्रभु से की गई प्रार्थना हमारे आशा के दीपक को प्रदीप्त रखती है। प्रार्थना के लिए एक मंदिर का होना जरूरी नहीं मगर एक स्वच्छ मन का होना बहुत जरूरी है।
जीवन में सदा परिणाम उस प्रकार नहीं आते जैसा कि हम सोचते और चाहते हैं। किसी भी कर्म का परिणाम मनुष्य के हाथों में नहीं है लेकिन प्रार्थना उसके स्वयं के हाथों में होती है।
प्रार्थना व्यक्ति के आत्मबल को मजबूत करती है और प्रार्थना के बल पर ही व्यक्ति उन क्षणों में भी कर्म पथ पर डटा रहता है जब उसे ये लगने लगता है कि अब हार सुनिश्चित है। आप प्रार्थना करना सीखिए, प्रार्थना आपको आशावान बनाकर तब भी पूरी शक्ति के साथ आगे बढ़ना सीखाएगी जब घोर निराशा के बादल आपके चारों ओर मँडरा रहे हों।
सुरपति दास
इस्कॉन/भक्तिवेदांत हॉस्पिट
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY