सुप्रभातजी।
कहानी सुनी सुनाई ।
जो शास्त्रों का, पुराणों का, वेदों का आदर करता है, उसका स्वयं का आदर होता है। इनका निरादर करने से स्वयं का ही निरादर होता है, जिसका परिणाम बहुत खराब होता है।
अगर मनुष्य चाहे तो वह शास्त्रों के अध्ययन के बिना भी यह अनुभव कर सकता है कि जो वस्तु मिली है वो बिछुड़ जायगी, वह अपनी और अपने लिये नहीं है। जाल दो प्रकारका है- संसारी और शास्त्रीय।
संसारी जाल तो उलझे हुए छटाँक सूत के समान है और शास्त्रीय जाल उलझे हुए सौ मन सूत के समान है। शरीर, स्त्री-पुत्र, धन-सम्पत्ति आदि में राग होना ‘सांसारिक मोह’ है और द्वैत, अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैताद्वैत आदि दार्शनिक मतभेदों में उलझ जाना ‘शास्त्रीय मोह’ है।
सुरापति दास
इस्कॉन
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