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रिश्तों का दंश

 
कितने रिश्तों में जीते हैं लोग। कभी इंफ्रा रेड से जुड़ कर तो कभी ब्लूटूथ से जुड़ कर तो कभी वाईफाई से जुड़ कर। कितने रिश्ते पास रहकर भी दूर रहते हैं और कितने रिश्ते दूर रहकर भी दिल में समाए रहते हैं ।
Sanjay Sinha उवाच
रिश्तों का दंश
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फेसबुक ने ही मुझसे कहा है कि संजय सिन्हा आप अपनी ये वाली कहानी लोगों को फिर से सुनाएं। अब फेसबुक ने ही जब कह दिया है तो मैं कौन होता हूं मना करने वाला? कहानी है एक लड़की की। ऐसी लड़की, जिसकी शादी के कई साल बीत चुके हैं। उसका बच्चा भी है। पूरा परिवार जानता है कि वो अपने पति के साथ बहुत खुश है। उसका पति भी जानता है कि वो उसके साथ बहुत खुश है। लेकिन मैं जानता हूं कि वो लड़की खुश नहीं। वह हर रात पति के साथ गुजारती है और गुजरती है 'इंफ्रारेड' के दंश से। 
आप सोच रहे होंगे कि ये इंफ्रारेड' का दंश क्या है।
मैं इसे बताउंगा। लेकिन पहले आपसे एक सवाल। 
रिश्ते कैसे होने चाहिए? 
बहुत अजीब सा सवाल है ये। रिश्तों की कोई परिभाषा होती है क्या? रिश्ते तो रिश्ते होते हैं। नहीं, रिश्ते रिश्ते नहीं होते। कुछ रिश्ते होते हैं जो आपको गुदगुदाते हैं। कुछ रिश्ते होते हैं, जो आपको तकलीफ देते हैं। कुछ रिश्ते होते हैं, जिन्हें आप सिर्फ निभाते हैं, कुछ रिश्ते होते हैं जो नहीं निभ कर भी आपके रोम-रोम में होते हैं। 
आपने राजेश खन्ना की फिल्म 'आनंद' देखी होगी। उसमें राजेश खन्ना एकबार कहते हैं कि आपकी ज़िंदगी में भी ऐसे लोग आए होंगे जिन्हें आप नहीं जानते, जिनसे आप नहीं मिले, लेकिन जब उनसे मिलते हैं तो लगता है कि इनसे कोई पुराना नाता है। और कई बार ऐसे लोग मिलते हैं, जिन्होंने आपका कभी कुछ बिगाड़ा नहीं होता पर लगता है िक जनम-जनम के दुश्मन हैं। 
किसी से मिल कर यह लगना कि वह आपका प्रेम है, यही है रिश्ता। 
ऐसा कई दफा होता है जब आप किसी को मिलते हैं, तो आपके मन में उसके लिए प्यार का भाव पनपता है। आपके मन में उसके लिए भरोसा जगता है। सच कहें तो आपके दिल में उसके लिए घंटी बजती है। जानते हैं क्यों होता है ऐसा?
विज्ञान की भाषा में इसे' ब्लू टूथ' तकनीक कहते हैं।  
अब जो लोग नए मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें पता होगा कि ब्लू टूथ तकनीक क्या है। अगर आपने ब्लू टूथ तकनीक के विषय में नहीं सुना तो आप 'वाई-फाई' से परिचित होंगे। इंटरनेट के इस्तेमाल ने पिछले कुछ सालों में इन शब्दों से सबको परिचित करा दिया है। 
रिश्ता इसी वाई-फाई और ब्लू टूथ तकनीक पर टिका फलसफा है। याद कीजिए अपने टीवी के रिमोट को। टीवी और उसका रिमोट दोनों आपस में एक रिश्ता कायम करते हैं, जिसे 'इंफ्रारेड' तकनीक कहते हैं। इस तकनीक में आपके टीवी के सामने और रिमोट के सामने बल्ब लगे होते हैं, जो अदृश्य रोशनी फेकते हैं। जब इन रोशनियों का आपस में मिलन होता है तो दोनों एक दूसरे से संचालित होते हैं। इस रिश्ते की सबसे बड़ी कमी ये होती है कि जब तक टीवी और रिमोट आमने-सामने नहीं होंगे, उनके बीच रिश्ता कायम नहीं हो सकता। ये एक थोपा हुआ रिश्ता है, टीवी और रिमोट के बीच।
लेकिन जैसे ही 'ब्लू टूथ' तकनीक सामने आई, इसने बिना आमने-सामने हुए भी गुप्त कोड के जरिए अपने जैसी मशीनों से रिश्ता कायम करना शुरू कर दिया। ठीक वैसे ही जैसे वाई-फाई तकनीक में आपके कम्यूटर बिना तार के भी हवा में दूसरे कम्यूटरों से बात करने लगे। 
आपमें से बहुत से लोग इस सच से वाकिफ होंगे कि कई दफा एक घर, एक कमरा और एक बिस्तर पर रह कर भी रिश्तें प्रगाढ़ नहीं रहते। वो रिश्ते दरअसल इंफ्रारेड दंश के शिकार होते हैं। इसमें टीवी और रिमोट के बीच जो रिश्ता कायम होता है, वह एकदम सामने से बल्ब से बल्ब को मिला कर फेंकी गई रोशनी से कायम होता है। लेकिन जहां ब्लू टूथ तकनीक से रिश्ता बनता है उसमें ये शर्त नहीं होती कि दोनों का मिलन हो। दोनों एक दूसरे से जु़ड़ जाते हैं एक खास फ्रिक्वेंसी पर आकर। वाई-फाई तकनीक में भी तारों से एक दूसरे के जुड़ने की दरकार नहीं होती। वहां भी एक रिश्ता दे रहा होता है, दूसरा ले रहा होता है। और इस तरह बिना किसी तामझाम के ये रिश्ता कायम हो जाता है। 
अगर इसे बहुत सामान्य भाषा में कहें तो ये रोम-रोम से जुड़ने के समान हुआ। जो रिश्ते रोम-रोम से जुड़ जाते हैं, उन रिश्तों की मियाद होती है। उन रिश्तों में तड़प होती है। वो रिश्ते दीर्घायु होते हैं। जिन रिश्तों में आमने-सामने बैठ कर बल्ब से बल्ब की रोशनी मिलाने की दरकार होती है, वो थुपे हुए रिश्ते होते हैं। 
पता नहीं कहां पढ़ा था लेकिन एक महिला का हवाला देकर किसी ने लिखा था कि अपने पति के  साथ होते हुए वो किसी फिल्मी हीरो या अपने किसी साथी को मन ही मन जीती थी। ये एक फंतासी  है, लेकिन मुझे लगता है कि दुनिया की बहुत सी पत्नियां और बहुत से पति ऐसी कल्पनाओं में जीते होंगे। जो लोग ऐसी कल्पनाओं में जीते हैं, वो इंफ्रारेड से अपने रिश्ते तो जोड़ लेते हैं, लेकिन एक दूसरे के साथ थुपे हुए होकर। उनका मन तो ब्लू टूथ की उड़ान भर कर कहीं और पहुंच चुका होता है। 
दुनिया की निगाह में वो व्यक्ति उस वक्त उसके साथ होता है, जिसके साथ वो रह रहा होता है, पर हकीकत में उसका मन किसी और के मन से 'ब्लू टूथ' और 'वाई-फाई' से जुड़ा होता है। 
रिश्तों को इसी आजादी की दरकार होती है। उसे अपनी मर्जी से जुड़ने की आजादी जब मिलती है, तब वो खिलता है। 
बंधे हुए रिश्ते बोझिल टीवी और उसके रिमोट की तरह होते हैं, जो सिर्फ आपके ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ा सकते हैं कि देखो मेरे पास इतना बड़ा और महंगा टीवी है। दरअसल ज़िंदगी ड्राइंग रूम की शान से नहीं चलती। ड्राइंग रूम तो दूसरों के लिए होता है।

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