सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
धन को धन नहीं मानना चाहिए। वह तो आता और चला जाता है। परिस्थितियों के झटके बड़े-बड़े धनी को नीचा करवा देते हैं। गरीब के अमीर बनने में देर लग सकती है, पर लगातार दो-चार थपेड़े लगने मात्र से अमीर की स्थिति गरीब से भी दयनीय हो जाती है। व्यापार में हानि, बेचैनी, दुर्घटना, कुसमय, मुकदमा, बीमारी आदि कितने ही ऐसे कारण हैं जो अच्छी आर्थिक स्थिति को उलट-पलट कर रख देते हैं।
ऐसी दशा में गुणहीन व्यक्ति निर्धन हो जाने पर पुनः उठ खड़ा होने में असमर्थ ही रहता है। पर जिसके भीतर सद्गुणों की पूँजी भरी पड़ी है, वह पुनः अपना खोया हुआ वैभव प्राप्त कर लेता है। आत्मबल और आत्मविश्वास उसे दैवी सहायता की तरह सदा प्रगति का मार्ग दिखाते हैं।
अपने मधुर स्वभाव के कारण वह जहाँ में भी जाता है, वहीं अपना स्थान बना लेता है। अपनी विशेषताओं से वह सभी को प्रभावित करता है और सभी की सहानुभूति पाता है। दूसरों को प्रभावित करने और अपनी सफलता का प्रधान कारण तो अपने सद्गुण ही होते हैं। जिसके पास यह विशेषता होगी उसके लिए पराये अपने बन जाएँगे और शत्रुओं के मित्र बनने में देर न लगेगी।
सुरपति दास
इस्कॉन
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