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सामने का नज़ारा

 
चालीस वर्ष पूर्व अपना दांपत्य जीवन भी टपकत जग माही से शुरु हुआ था और आज भी टपकत जग माही ही है।
Sanjay Sinha उवाच
सामने का नज़ारा
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मैं रोज बहुत लोगों से मिलता हूं। अधिकतर लोगों के भीतर मैंने एक भूख देखी है। पैसों की भूख। बड़ा और सुंदर मकान। बड़ी गाड़ी। 
उस भूख के चक्कर में उलझा आदमी रोज के जीवन से किस कदर दूर है, उसे इसका अहसास भी नहीं। 
अभी पिछले दिनों जबलपुर में मेरे एक मित्र ने इच्छा जताई कि एक नए बन रही सोसाइटी में वो बंगला खरीदना चाहते हैं। उनके पास उसे खरीदने के लिए पैसे नहीं है, लेकिन वो कह रहे थे कि जल्दी वो उन पैसों का इंतज़ाम कर लेंगे। वो बंगला सामने हरे भरे पार्क को फेस करता है। मैं हैरान था इस बात पर कि जबलपुर में भी अब प्रीफेरेंसिअल लोकेशन चार्जेज बिल्डर मांगने लगे हैं। ये किसी फ्लैट की कीमत में अतिरिक्त प्रभार होता है जिसे बिल्डर फ्लैट की मूल कीमत में जोड़ता है। मतलब बाहर का नज़ारा क्या दिखेगा, इससे फ्लैट की कीमत यहां भी तय होने लगी है। महानगरों में तो ये बीमारी पहले से है।
मुझे याद आई अपनी सुनाई एक कहानी।
मेरे एक दोस्त ने दिल्ली में गोल्फ व्यू वाला एक फ्लैट खरीदा है। मुझे अपना नया फ्लैट दिखलाने ले गया था। बीसवीं मंज़िल के उस फ्लैट के नीचे गोल्फ क्लब की हरियाली दिख रही थी। मेरा दोस्त बहुत खुश हो कर बता रहा था, “संजय जी, इस व्यू के लिए मैंने घर के अधिक पैसे दिए हैं, जबकि ऐसा ही घर अगर मैं दूसरी तरफ लेता, तो मुझे कई लाख रूपए सस्ता मिलता।”
इन दिनों दिल्ली और तमाम बड़े शहरों में गोल्फ व्यू वाले मकानों की बहुत मांग बढ़ गई है। 
जिस फ्लैट की खिड़की से बाहर का दृश्य हरा-भरा या मनोरम दिखता है, बिल्डर उस फ्लैट की कीमत अधिक वसूलते हैं। लोग भी ऐसे फ्लैट की कीमत अधिक देने को तैयार रहते हैं। 
मैंने दोस्त के फ्लैट से नीचे झांका। बीस मंज़िल नीचे खूब हरियाली दिख रही थी। 
मेरे दोस्त की अपनी पत्नी से नहीं बनती। दोनों बात-बात पर झगड़ पड़ते हैं। दोनों के मन नहीं मिलते। मुझे नहीं पता कि उनकी आपस में क्यों नहीं बनती, लेकिन कल जब मैं फ्लैट देख कर घर लौट रहा था, तो सोच रहा था कि इन्होंने इतना सुंदर घर खरीदा है, शायद अब उनकी आपस में बनने लगे। घर के बाहर का नज़ारा बहुत खूबसूरत है, यकीनन अब दोनों के मन मिलने लगेंगे।
आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा घर के बाहर की खूबसूरती से कहां मन के मिलन को जोड़ रहे हैं। ऐसा भला कभी होता है क्या? 
आप ठीक ही सोच रहे हैं। ऐसा नहीं होता। मन का मिलन मन के भीतर के नज़ारे से होता है, मकान के बाहर के नज़ारे से उसका कोई संबंध नहीं होता। 
राजा हरिश्चंद्र ने जब अपना सबकुछ दान कर दिया था, तो वो बनारस के पास श्मशान घाट पर अपनी पत्नी तारा के साथ फूस की एक झोपड़ी बना कर रहने लगे थे। एक रात जब बहुत तेज़ बारिश हो रही थी तो हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हें भी कहां मेरे चक्कर में इस फूस की झोपड़ी में रहना पड़ रहा है, जिसकी छत टपक रही है और चारपाई भी टूटी हुई है। कहां तुम महल में रहने वाली राजरानी थी। सैकड़ों नौकर-चाकर तुम्हारी सेवा में लगे रहते थे। चारों ओर बगीचा था और फूलों की खुशबू थी। आह…!
तारा मुस्कुराई थीं। सचमुच फूस की छत टपक रही थी। चारपाई टूटी हुई थी। रानी राजा के और करीब होते हुए कान में फुसफुसा रही थीं, “खाट टूटत, टपकत जग माही, प्रिय की बांहों में कुछ बूझत नहीं।”
जब कोई अपने प्रिय की बाहों में होता है, तो टूटी चारपाई और टपकती छत के कोई मायने नहीं होते। असल चीज़ है प्रियतम का साथ।”
कल गोल्फ व्यू वाले फ्लैट को देखने के बाद लौटते हुए मुझे पता नहीं क्यों ये कहानी बार-बार याद आई। 
दिल्ली की सड़क पर देर रात गाड़ी चलाता हुआ मैं संजय सिन्हा, सड़क के किनारे खड़े कई फ्लैटों को देख रहा था। किसी के आगे पार्क था, किसी के आगे मॉल। बिल्डर ने अलग-अलग नज़ारों की अलग-अलग कीमत वसूली होगी।
बिल्डर व्यापारी होते हैं। व्यापारी बाज़ार की नब्ज़ समझते हैं। 
काश! कोई बिल्डर ऐसे फ्लैट बेचता, जिसमें बाहर का नज़ारा नहीं, भीतर का नज़ारा मायने रखता। 
तन की सुंदरता की मियाद होती है। मन की सुंदरता अंतहीन होती है। काश! कोई बिल्डर दिल्ली में ऐसे मकान बनाता और बेचता, जिसमें रह कर मन में प्यार बढ़ता। मन मनोरम होता। 
आपके संजय सिन्हा को यकीन है कि अगर किसी बिल्डर ने ऐसा कोई फ्लैट बना दिया, तो उसकी कीमत किसी भी गोल्फ व्यू, पार्क व्यू, मॉल व्यू, स्विमिंग पूल व्यू वाले फ्लैट से अधिक होगी। होनी भी चाहिए। हरिश्चंद्र की पत्नी तारा ने यही कहा था कि असल चीज़ है प्रियतम की बाहों में होना। जिनके मन मिलते हैं, उनके लिए बाहरी सुख की भला क्या कीमत? और जिनके मन नहीं मिलते, उनके लिए भी बाहरी सुख की क्या कीमत? 
सुख भीतर है। बाहर तृष्णा। 
मकान की कीमत बाहरी नज़ारे से तय होती है। घर की कीमत तो भीतरी नज़ारे से ही तय होती है। 


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