सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
हमारा सुख इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने धनवान हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितने धैर्यवान हैं। सुख अथवा प्रसन्नता किसी व्यक्ति की स्वयं की मानसिकता पर निर्भर करता है। असंतोषी व्यक्ति को जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती।
सुख का अर्थ कुछ पा लेना नहीं अपितु जो है उसमे संतोष कर लेना है। जीवन में सुख तब नहीं आता जब हम कुछ पा लेते हैं अपितु तब आता है, जब सुख पाने का भाव हमारे भीतर से चला जाता है।
सोने के महल में भी आदमी दुःखी रह सकता है यदि पाने की इच्छा समाप्त ना हुई हो और झोपड़ी में भी आदमी परम सुखी हो सकता है यदि ज्यादा पाने की लालसा मिट गई हो। सुख बाहर की नहीं, भीतर की संपदा है। यह संपदा धन से नहीं धैर्य से प्राप्त होती है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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