सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
श्रेष्ठ कर्म ही व्यक्ति को महान बनाते हैं। विचारात्मक प्रवृत्ति रचनात्मक अवश्य होनी चाहिए। शुभ एवं श्रेष्ठ कार्य केवल विचारों तक ही सिमट कर नहीं रह जाने चाहिए अपितु कार्य रूप में भी परिणित होने चाहिए।
जिस दिन शुभ विचार सृजन का रूप ले लेता है उस दिन परमात्मा भी प्रसन्न होकर आपके ऊपर आशीष की वर्षा कर देता है। कुछ ऐसा करो कि समाज की उन्नति हो। समाज स्वस्थ, सदाचारी बनकर उन्नति के मार्ग पर चले जिससे सबका भला हो।
मैंने दुनिया से बहुत लिया अब देने की बारी है। अब लेने के लिए नहीं, देने के लिए जीना है। एक बात का सदैव स्मरण रखना है कि ये जीवन अस्थायी है इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षण का सम्मान करो। सदैव सत्संग में रहें जिससे अच्छे और श्रेष्ठ विचार निरंतर आपको प्राप्त होते रहें।
सुरपति दास
इस्कॉन
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