सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
सम्पूर्ण संसार जड़ पदार्थ या श्री कृष्ण की माया है, संसार की हर वस्तु शरीर सहित नाशवान है। जड़ पदार्थ शरीर, संसार में जो आकर्षण दिखाई दे रहा है वही परमात्मा की झलक है। दृष्टि बदल जाय तो संसार कृष्णमय हो जाय, श्रीकृष्ण से कुछ भी अलग देखना ही माया है, शरीर में आत्मा के बिना कोई किसी की सेवा नही कर सकता है।
हम प्रत्येक दशा में श्री कृष्ण की ही सेवा कर रहे हैं, यह भावना ही कृष्ण भावनामृत कहलाती है। श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेम वश ही हम उनके संसार की सेवा दिव्य एवं आसक्ति रहित होकर हम तत्परता पूर्वक करते हैं, ऐसे कर्म का कोई फल नही परिणाम में दिव्य आनन्द मालिक के कार्य में सेवक को फल की इच्छा नही होती है।
केवल श्रीकृष्ण के आश्रित होकर हमें कर्तव्य कर्म ही करना है, बाकी जो होना है सनातन से हो ही रहा है। प्रकृति या माया तीन गुणों से सटीक नियम से कार्य कर रही है। ह्रदय में बैठे परमात्मा ही हमें स्मृति, ज्ञान एवं मोह प्रदान कर रहे हैं नही तो जड़ पदार्थ शरीर में कहां से आयेगा।
सुरपति दास
इस्कॉन/भक्तिवेदांत हॉस्पिटल
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