सुप्रभात जी। शुभ दीपावली की ढ़ेरों शुभकामनाएं
कहानी सुनी सुनाई।
चमत्कार दीखना भक्तों की पहचान नहीं है। यह कोई मूल्यवान् बात नहीं है। सब चमत्कार माया में हैं। भक्त की पहचान यह है कि उनके संग से अपने को स्वतः-स्वाभाविक शान्ति मिलती है। उनसे बिना पूछे अपनी शंकाओं का समाधान हो जाता है। वे कोई बात कह रहे हैं तो बिना प्रसंग के बीच में ऐसी बात आ जायगी, जिससे हमारे मन की शंका का समाधान हो जायगा।
जिसको भगवान् अच्छे लगते हैं, उसको सन्त अच्छे लगते हैं। जिसको सन्त अच्छे लगते हैं, उसे सारी दुनिया अच्छी लगती है। भगवान् और सन्त-महात्मा विशेष श्रद्धालु अनन्य भक्त के सामने ही प्रकट होते हैं। वे हर के सामने प्रकट नहीं होते, गुप्त रहते हैं। सन्त स्वभाव होता है, गृहस्थ या साधु नहीं होता।
जितने सन्त-महात्मा, श्रेष्ठ मनुष्य हुए हैं, उनके भीतर स्वार्थका त्याग तथा सब के हितका भाव था। अगर आपका भी ऐसा भाव बन जाय तो आप गृहस्थ में रहते हुए ही सन्त बन जायँगे। आपके हृदय में आनन्द का समुद्र आ जायगा। सबका हित चाहने वाला घर बैठे महात्मा हो जाता है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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