Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

तन की अस्वस्थता

 


Sudhir Kumar Jha


dsoenroptS28afg692083t2m6lfh2f61gh52f77008l6g9i7a5ucmi0fg7at  · 


सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
तन की अस्वस्थता उतनी घातक नहीं जितनी कि मन की अस्वस्थता है। तन से अस्वस्थ होने पर व्यक्ति केवल अपने को व ज्यादा से ज्यादा अपनों को ही दुखी करता है पर मन से अस्वस्थ व्यक्ति स्वयं को, परिवार को, समाज को और अपने सम्पर्क में आने वाले सभी को कष्ट देता है।

तन का रोग मिटाना कदाचित संभव भी है पर मन का रोग मिटाना असम्भव तो नहीं कठिन जरूर है। तन का रोगी रोग को स्वीकार कर लेता है लेकिन मन का रोगी कभी भी रोग को स्वीकार नहीं कर पाता।

दूसरों की उन्नति से जलन, दूसरों की खुशियों से कष्ट, दूसरों के प्रयासों से चिन्ता एवं अपनी उपलब्धियों का अहंकार यह सब मानसिक अस्वस्थता के लक्षण ही तो हैं। सत्संग, हरिनाम जप और भगवद शरणागति ही इस बीमारी का पूर्ण समाधान है।

सुरपति दास

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ