सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
प्रत्येक मनुष्य यह जानता है कि इस जगत में बिना हाथ हिलाये कुछ नहीं होता। एक तिनके के भी दो टुकड़े नहीं हो सकते। बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे जो स्वयं विचार करना जानते हों। वे दूसरों के विचारों के दास हैं। हमेशा दूसरों की सम्मति पर ही वे अपना जीवन व्यवहार चलाते हैं। उनको अपने ऊपर विश्वास नहीं।
ऐसे लोग दुःख और विपत्ति के समय दूसरों की सहानुभूति, दया और करुणा की मार्ग प्रतीक्षा करते हैं। वे अपनी बुद्धि को और अपनी निजता को खो बैठे हैं। इस प्रकार के मनुष्य हमेशा अपने विचारों को बदलते रहते हैं और दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं।
ऐसे मनुष्य सदा अपने भाग्य को दोष देते रहते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सकता। जो दूसरों के सहारे पर निर्भर रहते हैं वे किसी बात का निश्चय नहीं कर सकते और कठिनता से किसी बात पर स्थिर रहते हैं, क्योंकि हमेशा दूसरों के विचारों के अनुसार ही कार्य करते हैं। जब तक मनुष्य अपना स्वामी आप नहीं हो जाता तब तक उसके जीवन का संपूर्ण विकास नहीं हो सकता।
सुरपति दास
इस्कॉन
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