सुप्रभात जी ।
कहानी सुनी सुनाई ।
वृक्ष कभी इस बात पर व्यथित नहीं होता है कि उसने कितने फूल अथवा कितने पत्ते खो दिये। वह सदैव नयें फूल और पत्तों के सृजन के प्रति आशावान रहता है। नदियां भी कभी इस बात का शोक नहीं करती है कि प्रतिपल कितना जल प्रवाहित हो गया। वो सदैव उसी वेग में लोक मंगल हेतु प्रवाहमान बनी रहती है।
वृक्षों एवं नदियों को भी पता होता है कि हम जितना देंगे, उतना ही हमें प्रकृति द्वारा और अधिक दे दिया जायेगा। अर्जन और विसर्जन ये जीवन के दो पहलू हैं। विसर्जन होगा तो अर्जन स्वतः हो जायेगा।
जीवन में जब तक पुराना नहीं जाता है तब तक नयें आने की संभावनाएं भी शून्य ही रहती हैं। यदि जीवन से कुछ जा रहा है तो चिंता मत करो अपितु ये दृष्टि रखो कि वो ईश्वर जरूर हमें कुछ नया देने की कुछ और बेहतर देने की तैयारी कर रहा है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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