Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भविष्य को सुखमय बनाने हेतु

 

सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
हमारा जीवन जितना संतोषी होगा हमारी प्रतिस्पर्धाएँ भी उतनी ही कम होंगी। प्रायः हम भविष्य को सुखमय बनाने के पीछे वर्तमान को दुःखमय बना देते हैं। भविष्य का भय सदैव उनके लिए सताता है जो वर्तमान में भी संतुष्ट नहीं रहते।

जिस व्यक्ति को वर्तमान में संतुष्ट रहना आ गया फिर ऐसा कोई दूसरा कारण ही नहीं कि उसे भविष्य की चिंता करनी पड़े। वर्तमान में जीने का अर्थ है कि कल की प्रतीक्षा ना करते हुए प्रतिक्षण पूरी ऊर्जा के साथ जीवन जीना।

हमारे जीवन की सारी प्रतिस्पर्धाएँ केवल वर्तमान जीवन के प्रति हमारी असंतुष्टि को ही दर्शाती हैं। समय जब भी आयेगा वर्तमान बनकर ही आयेगा इसलिए पूर्ण सामर्थ्य, निष्ठा, लगन और उत्साह के साथ वर्तमान जियो ताकि भविष्य स्वतः आनंदमय बन सके।

सुरपति दास
इस्कॉन/भक्तिवेदांत हॉस्पिटल
 

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