Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दूसरों के विचारों का सम्मान

 

सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
दूसरों के विचारों का सम्मान करना भी अहिंसा ही है तो ठीक ऐसे ही दूसरे के विचारों का मर्दन करना भी हिंसा ही समझनी चाहिए। अहिंसा का अर्थ केवल किसी के प्राणों का रक्षण ही नहीं किसी के प्रण का और किसी के सिद्धांतो का रक्षण करना भी है। अहिंसा अर्थात वो मानसिकता जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार हो।

किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा का कर्म करने का अधिकार मिले चाहे ना मिले पर अपनी इच्छा को अभिव्यक्त करने का अधिकार अवश्य होना चाहिए। अहिंसा का सम्बन्ध किसी के शरीर को आघात पहुँचाने से ही नहीं किसी के हृदय को आघात पहुँचाने से भी है।

किसी के दिल को दुखाना भी बहुत बड़ी हिंसा है। गोली से तो शरीर जख्मी होता है पर किसी की कठोर बोली से आत्मा तक हिल जाती है। मन से वचन से और कर्म से सदैव दूसरों के मंगल व हित का भाव ही अहिंसा का श्रेष्ठ स्वरूप है। अहिंसा युक्त विचार जीवन को पाप मुक्त भी बना देते हैं।

सुरपति दास
इस्कॉन
सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
दूसरों के विचारों का सम्मान करना भी अहिंसा ही है तो ठीक ऐसे ही दूसरे के विचारों का मर्दन करना भी हिंसा ही समझनी चाहिए। अहिंसा का अर्थ केवल किसी के प्राणों का रक्षण ही नहीं किसी के प्रण का और किसी के सिद्धांतो का रक्षण करना भी है। अहिंसा अर्थात वो मानसिकता जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार हो।

किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा का कर्म करने का अधिकार मिले चाहे ना मिले पर अपनी इच्छा को अभिव्यक्त करने का अधिकार अवश्य होना चाहिए। अहिंसा का सम्बन्ध किसी के शरीर को आघात पहुँचाने से ही नहीं किसी के हृदय को आघात पहुँचाने से भी है।

किसी के दिल को दुखाना भी बहुत बड़ी हिंसा है। गोली से तो शरीर जख्मी होता है पर किसी की कठोर बोली से आत्मा तक हिल जाती है। मन से वचन से और कर्म से सदैव दूसरों के मंगल व हित का भाव ही अहिंसा का श्रेष्ठ स्वरूप है। अहिंसा युक्त विचार जीवन को पाप मुक्त भी बना देते हैं।

सुरपति दास
इस्कॉन
 

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