सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
संबंधों को संभालना भी जीवन की एक बहुत बड़ी कला है। आज के आधुनिक समय में हम अन्तरिक्ष में उड़ना सीख गए, समुद्र में तैरना सीख गए पर जमीन पर रहना भूल गए। हमने इमारतें बड़ी बना ली पर दिल छोटा कर लिया।
हमने रास्तों का चौड़ीकरण कर दिया पर जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को अति संकीर्ण बना दिया है। हमने साधन कई गुना बढ़ा लिए पर अपना मुल्य कम कर लिया। हमने ज्यादा बोलना सीख लिया पर प्रिय बोलना छोड़ दिया।
हम विचारों से तो सम्पन्न हो गये पर आचरण से बड़े दरिद्र हो गये हैं। वर्तमान के इस भौतिक युग में प्रगति के साथ हमारी दुर्गति भी बहुत हुई है। नित्य भगवद् चिंतन और भगवदाश्रय से इस मानव जीवन को आनंदमय बनायें।प्रभु परायण बनें क्योंकि प्रभु परायणता जीवन में हमें संबंधों के प्रति हमारे कर्तव्यों का बोध भी कराती है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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