सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
शास्त्रों में लोभ को समस्त पाप वृत्तियों का मूल माना गया है। अति लोभ से रावण ने लंका का सर्वनाश करवाया तो अति लोभ से ही दुर्योधन ने कुरुवंश का सर्वनाश करवाया। लोभ अहंकार से भी बुरी वस्तु है क्योंकि अहंकार आने पर तो व्यक्ति रिश्तों को तोड़ता है मगर लोभ के वशीभूत होने पर व्यक्ति द्वारा रिश्तों को लहुलुहान तक कर दिया जाता है।
महापुरुषों ने कहा है कि "कामी तरे क्रोधी तरे, लोभी की गति नाहिं" अर्थात कामी व्यक्ति की मुक्ति संभव है, क्रोधी व्यक्ति की भी मुक्ति संभव है पर लोभी व्यक्ति की कोई गति नहीं अर्थात् वो सदैव भटकता ही रहेगा।
लोभ हमें केवल जीते जी ही नहीं भटकाता है अपितु मृत्यु के बाद चौरासी के चक्करों में भी भटकाता है। जीवन में एक बात याद रखने जैसी है, कि जो व्यक्ति लोभ से बच जाता है, फिर वह अपने को अनेक पाप कर्मों से भी बचा लेता है।
सुरपति दास
इस्कॉन
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY