सुप्रभात जी। माघी नवरात्रि महा नवमी की ढ़ेरों शुभकामनाएं।
कहानी सुनी सुनाई।
यहाँ प्रत्येक व्यक्ति दूसरे को सुधारने में लगा है। आज प्रत्येक व्यक्ति की मनःस्थिति कुछ इस प्रकार की हो गई है कि वह स्वयं चाहे कितना ही झूठ बोल ले पर कोई दूसरा बोल दे तो उसे बर्दाश्त नहीं हो पाता है। वो दूसरों पर कितना भी क्रोध कर ले पर जब कोई उस पर क्रोध करता है, तब उसे असहनीय हो जाता है।
महापुरुषों के वचन हैं कि मनुष्य को स्वयं के प्रति कठोर और दूसरों के प्रति सरल होना चाहिए। ज्ञानी व्यक्ति किसी पूर्वाग्रह से मुक्त होता है। वह किसी पर अपना आधिपत्य जमाने का प्रयास नहीं करता है।
लोग जैसे हैं उन्हें वैसे ही स्वीकार कर लेना ही सबसे बड़ा ज्ञान है। सत्य का पालन स्वयं करना तो धर्म है पर दूसरों से जबरदस्ती सत्य का पालन कराना भी हिंसा का एक रूप है। प्रयासरत रहें कि जो परिवर्तन हम दूसरों में देखना चाहते हैं, उन्हें पहले स्वयं के जीवन में लाएं।
सुरपति दास
इस्कॉन
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